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२५८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:३ राजा ने तत्पश्चात् महौषध पण्डित से पूछा-'तात् ! क्या तुम इस प्रश्न का समाधान जानते हो?"
महौषध पण्डित ने कहा- "अवीचि से–नासिका से भवाग्र तक-भौहों के आगे के भाग तक-समग्रतया मेरे सिवाय इस प्रश्न का समाधान और कौन जानेगा?"
राजा-"तो बतलाओ।"
महौषध-“राजन् ! सुनिए-मेंढ़ा कुत्ते के लिए पाकशाला से मांस लाता है तथा कुत्ता मेंढ़े के लिए हस्थिशाला से घास लाता है। महल में स्थित श्रेष्ठ विदेहराज नेआपने एक दूसरे का, एक दूसरे लिए भोजन लाना प्रत्यक्ष देखा।"१
राजा को यह ज्ञात नहीं हुआ कि पूर्वोक्तरूप में चारों पण्डितों ने जो कुछ बताया था, वह उनको महौषध पण्डित से ही मालूम हुआ था। राजा ने यही सोचा कि पाँचों पण्डितो ने अपने बूद्धि-बल द्वारा हा पता लगाया। वह हषित हुआ और उसने कहा-"यह मेरे लिए अनल्प-अत्यधिक लाभ की बात है कि मेरे दरबार में ऐसे उच्च कोटि हैं. जो गहनातिगहन तथ्यों को जान लेने तथा उन्हें आख्यात करने में प्रवीण हैं।"
राजा पण्डितों पर बड़ा प्रसन्न हुआ। अपना परितोष व्यक्त करते हुए उसने कहा-- "पण्डितों ने जो सुभाषित किया है-तथ्य का सुन्दर रूप में आख्यान किया है,
आख्यान किया है, मैं उससे प्रष्ट है, इनकी योग्यता का आदर करता हूँ। मैं इन पण्डितों में से प्रत्येक को पुरस्का स्वरूप एक-एक अश्वतर-खच्चर, एक-एक रथ, एक-एक स्फीति-धन-धान्य सम्पन्न ग्राम देता हूँ।" महौषध का वैशिष्ट्य
महारानी उदुम्बरा को जब यह ज्ञात हुआ कि चारों पण्डितों ने महौषध पण्डित से
१. अड्ढपादो चतुप्पदस्स, मेण्डो अट्ठनखो अदिस्समानो। छादियं आहरति अयं इमस्स, मंसं आहरति अयं अमुस्स ॥१६॥ पासादगतो विदेहसेट्ठो, वीतिहारं अज्ञमबभोजनानं । अद्द क्खि किर सक्खि तं जनिन्द, भोयुक्कस्स च पुण्णमुखस्स चेतं ॥१७॥ २. लोभा वत में अनप्परूपा,
यस्स में एदिसा पण्डिता कुलम्हि । गम्भीरगतं निपुणमत्थं, परिविज्झति सुभासितेन धीर ॥१८॥ ३. अस्सतरो रथञ्च एकमेकं,
कीतं गामवर एकमेकं । सब्बं नो दम्भ पण्डितानं, परमपतीतमनो सुभासितेन ॥१६॥
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