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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड
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वे परस्पर विचार करने लगे-यदि हम आपस में मेलजोल कर रहें तो हमारा सुखपूर्वक निर्वाह हो सकता है।
कुत्ता बोला-"तब बतलाओ, कैसे करें।"
मेंढ़े ने कहा-"मित्र ! आज से तुम हस्तिशाला में जाने लगो । महावत तुम पर यह शंका नहीं करेंगे कि यह घास खाने आता है; क्योंकि तुम तृणभोजी नहीं हो। तुम जब भी अनुकूल अवसर देखो, वहां से मेरे लिए घास ले आया करो। मैं पाकशाला में जाऊंगा मुझ पर पाचक यह सन्देह नहीं करेगा कि यह मांस खायेगा; क्योंकि मैं तृणभोजी हूँ। मौका मिलते ही मैं तुम्हारे लिए छिपे-छिपे मांस लेता आया करूंगा।"
उन दोनों ने आपस में इस प्रकार समझौता कर लिया । कुत्ता हस्तिशाला में जाता, मुटठी भर घास मुँह में भर कर ले आता, राजमहल की बड़ी दीवार के पास ला-लाकर रखता जाता। मेंढ़ा उसे खा लेता । मेंढा पाकशाला में जाता, मुंह में मांस का टुकड़ा लेकर आता, दीवार के सहारे रखता जाता । कुत्ता वह मांस खाकर तृप्त हो जाता । यों वे आपसी मेलजोल के कारण खुशी से अपना निर्वाह करते।
राजा ने उनकी गाढ़ी मित्रता देखी, तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ—ये आपस में शत्रु होते हुए भी मित्रता के साथ रह रहे हैं। पहले मैंने ऐसा कभी नहीं देखा। मैं इस घटना से सम्बद्ध प्रश्न तैयार कर पण्डितों से पूछूगा । जो इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ होंगे, मैं उन्हें देश से निर्वासित कर दूंगा। जो इस प्रश्न का सही उत्तर दे पायेगा, मैं समझंगा, वह असाधारण पण्डित है। उसका मैं सम्मान करूंगा। आज तो विलम्ब हो गया है, कल वे जब मेरी सेवा में उपस्थित होगे, तब उनसे वह प्रश्न करूंगा।
दूसरे दिन वे पण्डित दरबार में आये तो राजा ने उनके समक्ष प्रश्न रखते हुए कहा-"इस लोक में जो कभी मित्रता-पूर्वक सात कदम भी नहीं चल पाये, वे शत्रु भी परस्पर मित्र बन गये। वह कौन-सा हेतु है, जिससे ऐसा हो सका?''
"यदि आज मेरे प्रातराश के नाश्ते के समय तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाए, तो मैं तुम सबको अपने देश से निकाल दूंगा; क्योंकि मुझे दुष्प्रज्ञों की-मूरों की कोई आवश्यकता नहीं है।"२
सेनक पण्डितों की कतार में सबसे पहले आसन पर बैठा था। महौषध सबसे आखिरी आसन पर बैठा था। महौषध ने मन-ही-मन उस प्रश्न पर चिन्तन किया तो उसे लगा- इस राजा में इतनी बुद्धि नहीं है कि यह ऐसा प्रश्न कल्पित कर सके । राजा ने अवश्य कुछ देखा है। यदि मुझे किसी तरह एक दिन का समय मिल जाए तो मैं इस सम्बन्ध में पता कर लूं, प्रश्न का समाधान खोज सकू।। १. येसं न कदापि भूतपुव्वं,
सक्खि सत्तपदम्पि इयस्मि लोके । जाता अमिता दुबे सहाया, पटिसन्धाय चरन्ति किस्स हेतु॥८॥ २. यदि मे अज्ज पात रासकाले, पञ्हं न सक्कुणेथ वत्तुमेतं । पब्बाजयिस्सामि वो सव्वे, नहि मत्थो दुप्पञजातिकेहि ॥६॥
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