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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक
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भ्रात-भाव
उदम्बरा देवी ने राजा को प्रणति-पूर्वक कहा-'देव ! महौषध पण्डित के ही कारण मेरे प्राणों की रक्षा हुई है। कृपया मुझे वरदान दीजिए-स्वीकृति प्रदान कीजिए. मैं महौषध को अपना छोटा भाई बना सकू।" .
राजा बोला--"देवी ! मैं यह स्वीकृति प्रदान करता हूँ' तुम ऐसा करो।"
उदुम्बर। देवी ने पुनः कहा-"मेरा यह मनः-संकल्प है, आज से मैं अपने छोटे भाई महौषध को दिये बिना कोई मिष्ठान्न नहीं खाऊंगी। कृपया यह एक वरदान मुझे और दीजिए, जब चाहूँ, तभी समय-असमय राज-भवन का द्वार खुलवाकर महौषध को मिष्ठान्न भिजवा सकूँ।"
राजा बोला- "कल्याणि ! मैं तुम्हें यह भी वरदान देता हूँ।"
में और कुत्ते को मंत्री
___एक दिन नाश्ता करने के बाद राजा टहल रहा था। टहलते-टहलते उसने एक मेंढ़े तथा कुत्ते को मित्रता के साथ रहते हुए देखा।
वह मेंढ़ा हस्तिशाला में हाथियों के खाने हेतु उनके आगे रखी ताजी घास खाता था। हाथीवानों-महावतों ने उसे पीटा, बाहर निकाला। भागते हुए उसकी पीठ पर एक महावत ने डंडा और मार दिया। वह मेंढ़ा अपनी झुकी हुई पीठ लिये वेदना से कराहता हुआ राजमहल की बड़ी दीवार के सहारे निढाल होकर बैठ गया। उसी दिन एक कुत्ता, जो राजा की पाकशाला से फेंके जाने वाले अस्थि-चर्म आदि खा-खाकर पुष्ट था, रसोईघर से मछलियों का मांस पकने की गन्ध पाकर उसे खाने हेतु आतुर हो उठा। चावल पका लेने के बाद रसोइया उस समय पाकशाला के पास बाहर खड़ा था, सुस्ता रहा था। कुत्ता पाकशाला में प्रविष्ट हुआ। जिसमें मछलियों का मांस पक रहा था, उसने उस बर्तन का
गिरा दिया और उसमें से मांस खाने लगा। ढक्कन के नीचे गिरने की आवाज रसोइये के कानों में पड़ी, तो वह तत्काल भीतर आया, कुत्ते को बर्तन में से मांस खाते देखा, दरवाजा बन्द कर लिया, कुत्ते को पत्थरों तथा डंडों से खुब मारा। कुत्ता मांस छोड़ चीखता हुआ दौड़ा। रसोइये ने उसका पीछा किया। उसकी पीठ पर एक डंडा और जमा दिया । कुत्ता अपनी पीठ झुकाये, एक टांग ऊपर उठाये भागता हुआ वहीं पहुंचा, जहां मेंढ़ा था। मेंढ़े ने कुत्ते से कहा-"मित्र ! तुम अपनी पीठ झुकाये क्यों आ रहे हो? क्या तुम्हें कोई बादी की बीमारी है ?"
कुत्ता बोला—"मित्र ! तेरी पीठ भी झुकी है, क्या तुम भी बादी से तकलीफ़ पा रहे हो?"
दोनों ने अपने-अपने साथ घटी हुई घटनाएँ कहीं। मेंढ़े ने कुत्ते से पूछा--"क्या फिर कभी पाकशाला में जाओगे ?" कुत्ता बोला—'नहीं जाऊंगा । यदि गया, तो मेरे प्राण नहीं बचेंगे।"
फिर कुने ने मेंढ़े से वही बात पूछी-"क्या तुम हस्तिशाला फिर जाना चाहोगे?"
__ मेंढ़ा बोला- "मुझसे अब यह शक्य नहीं होगा। यदि दुःसाहस करूंगा तो बेमौत मारा जाऊंगा।"
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