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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-चतुर रोकक : महा उम्मग्ग जातक
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से अवगत कराऊं।" राजा इससे हर्षित हुआ। उसने सोचा-मैं महौषध पण्डित का बुद्धिबल देखंगा। अनेक पुरुषों द्वारा संपरिवृत राजा सरोवर के तट पर आया।
महौषध पण्डित सरोवर के तट पर खड़ा हुआ। उसने मणि पर दृष्टि डाली। उसने फौरन ताड़ लिया कि यह मणि सरोवर में न होकर इसके तटवर्ती ताड़ पर होनी चाहिए; अतः वह बोला-"राजन् ! सरोवर में मणि नहीं है।" .. राजा-"पण्डित ! क्या तुम्हें वह जल में दृष्टिगोचर नहीं होती?''
महौषध पण्डित ने एक जल से भरी थाली मंगवाई और राजा से कहा-"देव ! देखिए केवल सरोवर में ही नहीं, इस थाली में भी मणि दृष्टिगोचर होती है।"
राजा-"पण्डित ! फिर मणि कहाँ है ?"
महौषध-"राजन् ! सरोवर में जल का प्रतिबिम्ब दृष्टिगोचर होता है । वह मणि नहीं है। इस ताड़ के पेड़ पर एक कौए का जो घोंसला है, मणि उसमें है। किसी मनुष्य को पेड़ पर चढ़ाएं, मणि उतार लेगा।" . राजा ने महौषध पण्डित के कथनानुसार एक मनुष्य को ताड़ के पेड़ पर चढ़ाया। वह कौए के घोंसले में से मणि उतार लाया । महौषध पण्डित ने उससे मणि लेकर राजा के हाथ में रख दी।
यह देखकर सभी लोग आश्चर्यान्वित हुए। उन्होंने महौषध की प्रतिभा की प्रशंसा की, उसे साधुवाद दिया। वे सेनक का परिहास करने लगे- “सेनक कैसा पण्डित है, मणि ताड़ पर थी, इसे वह नहीं जान सका। उसने व्यर्थ ही सरोवर तुड़वा डाला । यदि पण्डित हो तो ऐसा हो, जैसा महौषध है।" राजा महौषध पर अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने अपने गले से मुक्ताहार उतार कर महौषध को पहना दिया, महौषध के साथी एक सहस्र बालकों को भी मोतियों की मालाए दीं। राजा ने यह घोषित किया कि महौषध पण्डित बिना किसी रोक-टोक के, जब भी आवश्यक समझे, अपने साथियों सहित उसकी सेवा में आ सके।
गिरगिट का अभिमान
एक दिन की घटना है, राजा महौषध पण्डित के साथ बगीचे में गया। बगीचे के तोरण द्वार पर एक गिरगिट रहता था। गिरगिट ने राजा को आते हुए देखा । वह तोरण द्वार से उतरा। नीचे लेट गया। राजा ने यह देखा। उसने महौषध पण्डित से यह पूछा"पण्डित ! गिरगिट ने ऐसा क्यों किया?"
पण्डित ने कहा- "इसने आपकी सेवा में, शरण में होने का भाव प्रकट किया है।"
राजा- “यदि इसने मेरी सेवा का भाव प्रकट किया है तो मेरी सेवा व्यर्थ नहीं जानी चाहिए। इसे भोग्य-पदार्थ दिलवाये जाएं।"
महौषध-"इसे दूसरे भोग्य-पदार्थों की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए केवल खाना ही काफी है।"
राजा-"यह क्या वस्तु खाता है ?" . महौषध-"राजन् ! यह मांस खाता है।" राजा -"इसके लिए कितना मांस आवश्यक है ?" महौषध- "राजन् ! एक कौड़ी के मूल्य का मांस इसके लिए पर्याप्त है।"
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