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________________ २४० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ भावना से सेठ को कहा -- "गाथापति ! अपने पुत्र महौषध पण्डित को मुझे पुत्र के रूप में सौंप दो।" गाथापति बोला--- "राजन् ! यह अभी बालक है। अभी इसके होठों का दूध ही नहीं सूखा है । यह बड़ा हो जायेगा, तब स्वयं ही आपके पास आ जायेगा।" राजा ने कहा- "गृहपति ! अब से तुम इस बालक के प्रति अपनी ममता छोड़ दो। मैं इसे पुत्र-रूप में स्वीकार करता हूँ। तुम इसे अब से मेरा ही पुत्र समझो। मैं अपना पुत्र मानकर इसका लालन-पालन करूंगा।" महौषध ने राजा को प्रणाम किया। राजा ने सस्नेह उसका आलिंगन किया, उसका मस्तक चूमा, उसे हृदय से लगाया। महौषध ने अपने पिता श्रीवर्धन को प्रणाम किया तथा वहाँ से विदा करते हुए कहा-"पितवर्य ! मेरी ओर से आप निश्चिन्त रहें।" राजा ने महौषध कुमार से पूछा--"पुत्र ! भोजन महल के भीतर किया करोगे या बाहर ?" महौषध ने विचार किया मेरे अनेक साथी हैं, मेरे साथ-साथ उन्हें भी उत्तम भोजन मिले, इस हेतु मुझे भोजन महल से बाहर ही करना उचित है । यह सोचकर उसने राजा को उत्तर दिया कि महाराज ! मैं महल से बाहर ह भोजन किया करूंगा। राजा ने उसके लिए उपयुक्त आवास स्थान की व्यवस्था कर दी। उसे उसके हजार सहवर्ती बालकों के साथ सब प्रकार का खर्च दिये जाने का आदेश कर दिया। सभी आवश्यक वस्तुएं उसके यहाँ भिजवा दीं। महौषध राजा की सेवा में रहने लगा। राजा के मन में उसकी और परीक्षा करने की उत्सुकता थी। कौए के घोंसले में मणि उस नगर के दक्षिण दरवाजे के पास एक पुष्करिणी थी। उसके तट पर एक ताड़ का वृक्ष था। उस वृक्ष पर एक कौआ रहता था। कौए के घोंसले में एक मणि थी । मणि की छाया सरोवर (पुष्करिणी) में दिखाई देती थी। राजा के सेवकों ने समझा सरोवर में मणि है । उन्होंने इसकी राजा को सूचना दी। राजा ने सेनक पण्डित को बुलाया और उसको कहा- सरोवर में मणि दृष्टिगोचर होती है। उसे जल से बाहर कैसे निकाला जाए ?" सेनक बोला-राजन ! सरोवर का सारा पानी बाहर निकलवा दिया जाए। तब सरोवर के पंदे पर दीखने वाली मणि प्राप्त हो जायेगी। राजा ने सरोवर को खाली कराने का कार्य उसी के जिम्मे छोड़ दिया । उसने बहुत से मजदूर लगवाये। उन्होंने सरोवर का पानी निकाला, कीचड़ निकाला, पेंदा खरोंचा, किन्तु, मणि दृष्टिगोचर नहीं सरोवर को फिर जल से भरा गया। ऐसा होते ही मणि का प्रतिबिम्ब दृष्टिगोचर हआ। पुनः उसका पानी, कीचड़ आदि निकाला गया, पर, दूसरी बार भी मणि प्राप्त नहीं की जा सकी। तदनन्तर ज्योंही सरोवर पानी से भर दिया गया. मणि फिर दीखने लगी। राजा ने महौषध पण्डित से कहा-"क्या तुम सरोवर से मणि निकलवा सकते हो?" महौषध बोला-"महाराज ! यह कोई कठिन बात नहीं है । आइए, मैं आपको वस्तु-स्थिति ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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