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तत्त्व': आचार : कथानुयोग ]
राजा से यह पूछता हुआ
बोला - "तुम लोगों ने जो गधा पकड़ा है, उसे यहाँ लाओ ।"
बालकों ने गधे का मुंह खोला, उस पर लपेटा हुआ कपड़ा हटाया, उसे लाये । महौषघ ने उसे राजा के चरणों में लिटाया और राजा से पूछा - "राजन् ! इस गधे की क्या कीमत है ?"
कथानुयोग — चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २४७ महौषध उठा । उसने अपने साथी बालकों की ओर देखा,
राजा ने कहा--"यदि कार्य योग्य हो तो आठ काषार्पण ।"
महौषध - "इसके संयोग से उत्तम घोड़ी की कुक्षि से उत्पन्न हुए खच्चर क्या का मूल्य होता है ?"
राजा—''पण्डित ! खच्चर अमूल्य होता है— उसकी भारी कीमत होती है, जिसे दे पाना हर किसी के सामर्थ्य से बाहर है।"
महौषध - "आप ऐसा कैसे कह रहे हैं ? क्या आपने नहीं कहा- - क्या आपके कहने यह अभिप्राय नहीं था कि पुत्र की अपेक्षा पिता ही अधिक श्रेष्ठ होता है। यदि आपका कथन सच हो तो आपके मन्तव्यानुसार खच्चर से गधा अधिक श्रेष्ठ होना चाहिए। क्योंकि खच्चर का जनक गधा ही तो होता है ।'
"राजन् ! आपके पण्डित इतना भी नहीं जानते, तालियाँ बजाकर परिहास करते हैं आपके पण्डितों की बुद्धि पर मुझे बड़ा तरस आता है । ये आपको कहाँ से प्राप्त हुए ?" चारों पण्डितों की मिट्टी पलीत करते हुए उसने राजा से कहा - "महाराज ! यदि आप पुत्र से पिता को उत्तम मानते हैं तो अपने हित साधते हुए मेरे पिता को अपने यहाँ रख लें तथा आपको पिता से पुत्र उत्तम जंचता हो तो मुझे रख लें।"
यह सुनकर राजा को बड़ा आनन्द हुआ । समग्र राज्यपरिषद् इससे प्रभावित हुई । सभासदों ने कहा - "महौषध पण्डित ने प्रस्तुत प्रश्न का बहुत सुन्दर समाधान दिया है ।" उन्होंने उसको साधुवाद दिया, उपस्थित लोग भी बहुत हर्षित हुए। चारों पण्डितों के मुख मलिन हो गये ।
इस घटना से यह न समझा जाए कि बोधिसत्व ने पिता के तिरस्कार हेतु ऐसा किया । बोधसत्त्व तो माता-पिता के उपकारों को जितना सम्मान देते हैं, उतना और कोई नहीं देता । राजा के प्रश्न का समाधान करने हेतु अपना प्रज्ञोत्कर्ष प्रकट करने हेतु तथा राजा के चारों पण्डितों को प्रभावशून्य करने हेतु यह किया ।
राजा बहुत प्रसन्न हुआ। सुरभित जल से परिपूर्ण स्वर्ण भृगारक लिया -सोने की झारी ली, महौषध के पिता श्रीवर्धन के हाथ पर जल रखा तथा कहा, आपको मैं प्राचीन यवमज्भक ग्राम प्रदान करता हूँ, आप इसका परिभोग करें । राजा ने यह भी आदेश दिया कि बाकी सभी श्रेष्ठी श्रीवर्धन श्रेष्ठी के अनुगामी, आज्ञानुवर्ती हों । राजा ने फिर बोधिसत्व की माता के लिए सभी प्रकार के आभूषण भेजे । राजा महौषध कुमार द्वारा दिये गये उपर्युक्त समाधान से बहुत प्रभावित था । उसने उसको पुत्र के रूप में स्वीकार करने की
१. हंसि तुवं एवं मसि संय्यो पुतेन पिताति राजसेट्ठ | इन्दस्सतरस्स तं अयं, अस्सतरस्स हि : गर्दभो पिता ॥३॥
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