________________
२४६
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
खाई के पास एक गधा दिखाई दिया। उसने अपने ताकतवर साथियों को आदेश दिया--"इम गधे का पीछा कगे, इसे पकड़ लो, इसका मुंह बाँध दो, जिससे यह रेंकने न पाए । इसे एक मोटे कपड़े में लपेट लो, वन्धों पर उठा लो, लिये आओ। साथियों ने उसकी आज्ञा के अनुसार किया।
महौषध कुमार की पहले से ही नगर में प्रशस्ति और कीति थी। लोग उसे देखने को उत्कण्ठित थे । वे उसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते थे। जब वह नगर के राजमार्गों से गुजरा, लोग कहने लगे-"यह प्राचीन यवमज्झक ग्राम के श्रीवर्धन सेठ का पुत्र है। जब यह उत्पन्न हुआ, इसके हाथ में औषधि थी। यह बहुत बुद्धिशील है । राजा द्वारा पूछे गये अनेक प्रश्नों के इसने बुद्धिमत्तापूर्ण प्रतिप्रश्न उपस्थित किये।"
महौषष राजभवन में
महौषध कुमार राज भवन के द्वार पर पहुँचा, अपने आने की सूचना करवाई। राजा ने जब यह सुना तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। वह बोला-"पुत्र सदृश प्रिय महौषध पण्डित को शीघ्र मेरे पास लाओ।" एक सहस्र बालकों से घिरा हुआ महौषध प्रासाद में आया। राजा को प्रणाम किया तथा एक ओर खड़ा हो गया।
राजा ने ज्योंही महौषध पण्डित को देखा, वह बहुत हर्षित हुआ। बड़े मधुर शब्दों में उसने उससे कुलल-संवाद पूछा और कहा- “पण्डित ! अपने लिए समुचित समझो, उस आसन पर बैठ जाओ।" महौषध ने अपने पिता की ओर दष्टिपात किया। पिता संकेत को समझ गया, वह आसन से उठा और अपने पुत्र से बोला-"पण्डित ! इस आसन पर बैठो।" महौषध पिता के आसन पर बैठ गया। उसे जब इस प्रकार बैठते देखा तो सेनक, पुक्कुस, काविन्द, देविन्द तथा अन्य अज्ञजनों ने तालियां बजाई। वे जोर-जोर से हँसे । उन्होंने महौषध कुमार का परिहास करते हुए कहा- 'यह अन्धा, बेवकूफ 'पण्डित' कहलाता है, बड़ा आश्चर्य है। इसने अपने पिता को आसन से उठाया और खुद उसके आसन पर बैठ गया। क्या यह मूर्खता नहीं है ? यह पण्डित कहे जाने योग्य नहीं है ।" यह देख कर राजा का मुंह उदास हो गया।
महौषध ने राजा से पूछा- "देव ! लगता है, आपका मन खिन्न हो गया है।"
राजा- "हां, पण्डित ! ऐसी ही बात है। वास्तव में मेरा मन बहुत खिन्न हो गया है। तुम्हारे सम्बन्ध में जो कुछ सुना था, वह उत्तम था, किन्तु तुम्हारा दर्शन वैसा सिद्ध
नहीं हुआ।"
महौषध-"इसका क्या कारण है ?"
राजा-"तुमने अपने पिता को उसके आसन से उठाया तथा स्वयं उस पर बैठ गये। इसका मेरे मन पर विपरीत असर हुआ ।"
___ महौषध-“क्या पिता को समी स्थानों पर-- सभी अपेक्षाओं से पुत्र से श्रेष्ठ समझते हैं ?"
राजा-"पण्डित ! हां, ऐसी ही बात है।"
"राजन् ! क्या आपने हमारे पास यह आदेश प्रेषित नहीं किया कि खच्चर को भेजें या श्रेष्ठतर को भेजें?"
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org