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२५० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:३ राजा ने अपने एक कर्मचारी को लादेश दिया-"देखो, यद्यपि इस गिरगिट को कौड़ी भर के मूल्य का मांस पर्याप्त है, पर, राजा से जो मिले, वह कौड़ी मर के मूल्य का हो, यह शोभित नहीं है। इसलिए इसे आधे मासे की कीमत का मांस लाकर तुम दे दिया करो।"
कर्मचारी ने निवेदन किया-"महाराज ! जैसी आज्ञा । मैं यह करता रहूंगा।" तब से वह कर्मचारी नियमित रूप से प्रतिदिन उस गिरगिट को उतना मांस देने लगा।
एक बार का प्रसंग है, उपोसथ का दिन था। मांस मिल नहीं सका। कर्मचारी ने आधे मांस के परिमापक- बाट में छेदकर धागा डालकर उसे गिरगिट के गले में पहना दिया। गिरगिट ने उस आधे मासे को अत्यन्त मूल्यवान् समझा । उसके मन में अहंकार उत्पन्न हो गया। संयोग ऐसा बना, राजा उसी दिन फिर बगीचे में आया। गिरगिट ने राजा को आते हुए देखा । उसे बड़ा अभिमान था कि वह कितना बड़ा धनी है। वह द्वार से नीचे नहीं उतरा, वहीं पड़ा-पड़ा सिर हिलाता रहा । राजा के धन के साथ अपने धन की तुलना करता हुआ वह मन-ही-मन कहता रहा-राजन् ! तुम अधिक धन-संपन्न हो
या मैं
?
राजा ने गिरगिट की यह स्थिति देखकर महौषध से पूछा-'यह गिरगिट आज जैसे तोरण पर पड़ा है, पहले कभी ऐसे पड़ा नहीं रहता था। महौषध ! तुम यह पता लगाओ कि गिरगिट आज स्तब्ध जड़-सदृश कैसे हो गया है।"
___ महौषध पण्डित ने मन में चिन्तन किया, उपोसथ का दिन होने से राज पुरुष को मांस नहीं मिला होगा। संभव है, उसने इसीलिए आधा मासा गिरगिट के गले में बांध दिया हो। गिरगिट को इससे अहंकार उत्पन्न हो गया हो।
___ मन में यह विचार कर पंडित ने राजा को अपने मनोभाव से अवगत कराते हुए कहा-"राजन् ! अब से पूर्व जिसे प्राप्त करने का कभी अवसर नहीं मिला, वह आधा मासा मिल जाने से गिरगिट अपने को मिथिलेश्वर विदेह से अधिक मान रहा है।"
राजा ने अपने उस कर्मचारी को, जो गिरगिट को नित्य आधे मासे के मूल्य का मांस देता था, बुलवाया और उससे इस सम्बन्ध में जिज्ञासा की। उस पुरुष ने घटित घटना कही, जो महौषध पण्डित द्वारा कही गई बात से पूरी तरह मेल खाती थी।
राजा यह सोचकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ कि किसी से कुछ भी पूछे बिना महौषध पण्डित ने सर्वज्ञाता तथागत की ज्यों गिरगिट का आन्तर-भाव जान लिया। नगर के चारों दरवाजों पर जो चुंगी की राशि प्राप्त होती थी, राजा ने महौषध पण्डित को वह पुरस्कार स्वरूप दिलवाई। राजा को गिरगिट पर बड़ा क्रोध आया। उसने चाहा कि उसको दिया जाने वाला मांस बन्द कर दिया जाए, किन्त, महौषध पंडित ने राजा से कहा-"ऐसा करना उचित नहीं है।" राजा ने महौषध का कहना मान लिया।
१. नायं पुरे उन्नमति तोरणग्गे ककण्टको।
महोसध ! विजानीहि केन यद्धो ककण्टको ॥४॥ २. अलद्धपुब्बं लद्धान, अड्ढमासं ककण्टको।
अतिमन्नति राजानं, वेदेहं मिथिलग्गहं ॥५॥
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