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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २४३
महौषध पण्डित ने विचार किया-राजा ने जो यह प्रस्ताव भेजा है, वह प्रतिप्रश्न पाने की दृष्टि से, पूछने की दृष्टि से है । उसने गांववासियों से कहा-"घबराओ नहीं, मेरे पास उपाय है।" उसने वार्तालाप करने में चतुर दो-तीन पुरुषों को बुलाया और उन्हें कहा-"तुम लोग राजा के यहाँ जाओ, उससे कहो-"राजन् ! गाँववासियों को यह ज्ञात नहीं है कि राजकुल की वह बालू की रस्सी, जो जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है, कितनी मोटी है, कितनी पतली है ? अपने यहाँ की पुरातन बालू की रस्सी से बालिश्त भर या चार अंगुल का टुकड़ा काटकर यहाँ भिजवादें। उसे देखकर उसी के हिसाब से गांववासी रस्सी बंटेंगे, तैयार करेंगे।"
राजा कहे कि उसके यहां बालू की कोई रस्सी नहीं है, ऐसी रस्सी कभी नहीं थी, बने भी कैसे?
इस पर तुम लोग कहना- "आपके यहाँ बालू की रस्सी कभी नहीं हुई, बन नहीं सकती तो प्राचीन यवमझक ग्रामवासी बालू की रस्सी कैसे बना पायेंगे ?"
उन आदमियों ने वैसा ही किया, जैसा महौषध पण्डित ने उनको समझाया था। राजा ने जब उनसे यह सुना तो पूछा-"यह प्रततिप्रश्न किसके मस्तिष्क में आया ? किसने सोचा?
उन आदमियों ने कहा- "यह महौषध पण्डित के मस्तिष्क में उपजा।" यह सुनकर राजा हषित हुआ।
वह महौषध पण्डित को बुलाना चाहता था, पर, सेनक पण्डित की वैसा करने में सहमति नहीं थी। पुष्करिणी भिजवाएं
राजा ने एक बार प्राचीन यवमझक ग्रामवासियों के पास राजपुरुषों के साथ अपना आदेश भिजवाया। राजपुरुषों ने गांववासियों से कहा- "राजा जल-क्रीडा का आनन्द लेना चाहता है। तदर्थ पाँच प्रकार के उत्तमोत्तम कमलों से सुशोभित पुष्करिणी भिजवाएं। यदि नहीं भिजवा सकोगे तो एक सहस्र का दण्ड देना होगा।"
गाँववासी बड़े हैरान थे। उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझा । उन्होंने महौषध पण्डित से यह कहा।
___ महौषध पण्डित ने विचार किया-यह भी प्रतिप्रश्न पूछने की ही बात होनी चाहिए। उसने वार्तालाप में प्रवीण कुछ पुरुषों को बुलाया, उनसे कहा-"तुम जाओ, पानी में खेल-कूद करो, डुबकियां लगाओ, आँखें लाल करो, बाल गीले करो कपड़े गीले करो, देह पर कीचड़ मलो, हाथ में रस्सी, डंडे तथा पत्थर लो, राजद्वार पर जाओ। अपने आने की सूचना राजा तक पहुँचवाओ। जब भीतर जाने का आदेश प्राप्त हो जाए तो राजा के पास जाओ तथा उससे कहो-'राजन् ! हम प्राचीन यवमझक गाँववासी हैं । आपने गांववासियों को पांच प्रकार के कमलों से आपूर्ण पुष्करिणी भेजने को कहा । हम आपके लिए उपयुक्त एक विस्तीर्ण पुष्करिणी लेकर आये हैं, पर, वह तो वनवासिनी है-जंगल में निवास करने वाली है। जब उसने नगर को देखा, नगर के परकोटे को देखा, खाई को देखा तथा बड़े-बड़े महलों को देखा, तो वह बहुत भयभीत हो गई। वह रस्सो तुड़ाकर वापस जंगल में भाग गई। हम लोगों ने उसे ढेलों और पत्थरों से मारा, रोकने का प्रयास किया, किन्तु,
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