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आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन
[ खण्ड : ३
किसी भी तरह उसे रोक नहीं सके । आपसे अनुरोध है, आप वन से लाई हुई कोई पुरातन पुष्करिणी हमें दें, हम उसके साथ उसे जोतकर ले आयेंगे ।
"राजा कहे, हमने तो आजतक जंगल से न कोई पुष्करिणी मंगवाई तथा न किसी पुष्करिणी को जोतकर लाने हेतु पुष्करिणी ही कभी प्रेषित की ।"
"राजा के यों कहने पर तुम लोग उससे कहना - 'राजन् ! जरा सोचें, जब आप कहीं पुष्करिणी नहीं भेज सकते तो प्राचीन यवमज्भक ग्रामवासी पुष्करिणो कैसे भेज सकेंगे ?'
वे मनुष्य गाँव से चलकर राजा के पास गये । महौषध पण्डित ने जैसा उन्हें समझाया था, उसी प्रकार उन्होंने कहा ।
राजा यह जानकर बड़ा प्रसन्न हुआ । उसने समझ लिया कि इन आदमियों ने यह जो कहा, वह महौषध पण्डित की ही सूझ है ।
राजा महौषध पण्डित को बुलाना चाहता था, पर, वह बुला नहीं सका ।
उद्यान भेजें
राजा ने एक दिन राजपुरुषों को अपने आदेश के साथ प्राचीन यवमज्भक ग्राम में भेजा । राजपुरुषों ने ग्रामवासियों से कहा कि महाराज ने आप लोगो को कहलवाया है कि वे उद्यान में क्रीडा मनोरंजन करना चाहते हैं । उनका उद्यान बहुत पुरातन हो गया है । प्राचीन यवमज्झक ग्रामवासी उन्हें सुन्दर पुष्पों से युक्त पादपों से परिपूर्ण एक नवीन उद्यान भेजें ।
सेनक पण्डित की राय न होने से
ग्रामवासियों ने जब राजा के इस आदेश की पूर्ति करने में अपने को अक्षम पाकर महौषध पण्डित से यह बात कही तो उसने समझ लिया कि यह कार्य का विषय नहीं है, प्रतिप्रश्न का विषय है । उसने ग्रामवासियों को आश्वस्त किया । चतुर, बातचीत करने में निपुण मनुष्यों को राजा के पास भेजा तथा पुष्करिणी के प्रसंग में जो बात कहलाई थी, वही बात कहलाई ।
राजा परितुष्ट एवं प्रसन्न हुआ । उसने सेनक पण्डित को बुलाया, उद्यान की बात कही तथा पूछा - "क्या महौषध पण्डित को बुला लें ?"
महौषध पण्डित के आ जाने से सेनक पण्डित को अपने लाभ में हानि होने की आशंका थी; इसलिए जैसा पूर्व सूचित है, उसके मन में महौषध के प्रति ईर्ष्या का भाव था । इसी कारण उसने कहा – “ इतने मात्र से कोई पण्डित नहीं होता। अभी हमें और प्रतीक्षा करनी चाहिए ।"
राजा सेनक की बात सुनकर विचारने लगा - - महौषध पण्डित बहुत प्रज्ञाशाली है । मेरे प्रश्नों का जो उत्तर, समाधान उसने दिया, उससे मेरे मन में उसके प्रति बहुत आदर उत्पन्न हुआ है। एक प्रकार से उसने मेरा मन जीत लिया है। गूढ़ परीक्षाओं में तथा प्रतिप्रश्नों में उसका विश्लेषण तो भगवान् बुद्ध के सदृश है । सेनक प्रज्ञाशील पण्डित को आने से रोकता है। अच्छा हो, सेनक की बात पर ध्यान न देता हुआ मैं उसे यहाँ ले आऊं । यह सोचकर राजा बड़ी साज-सज्जा के साथ सदल-बल प्राचीन यवमज्भक ग्राम की ओर रवाना हुआ। राजा मंगल-अश्व पर सवार था, आगे बढ़ रहा था। बीच में से कुछ ऐसी
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