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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:३
एक विचित्र बेल
राजा ने एक दिन प्राचीन यवमझक ग्रामवासियों को यह आदेश भिजवाया कि वे यहाँ राजभवन में एक ऐसा बैल भेजें, जो बिलकुल सफेद हो, जिसके पैरों में सींग हों, जिसके सिर पर थूही हो, जो नियमतः तीन बार आवाज करता हो । यदि गांव-वासी ऐसा बैल नहीं भेज सके तो उन पर एक सहस्र का जुर्माना होगा।
ग्रामवासी यह नहीं समझे कि राजा क्या चाहता है।
महौषध पण्डित ने बतलाया-- "राजा एक ऐसा मुर्गा चाहता है, जो बिलकुल सफेद हो । मुर्गे के पैरों में नाखून होते हैं-उसके तीखे पंजे होते हैं; अत: वह पैरों में सींग युक्त कहा जा सकता है। उसके मस्तक पर कलंगी होती है, जिससे वह थूही वाला कहा जा सकता है। वह तीन बार नियम से बांग देता है, जिससे वह तीन बार आवाज करने वाला कहा जा सकता है।"
गांववासियों ने महौषध कुमार के निर्देश के अनुसार एक सफेद मुर्गा राजा को भिजवाया।
राजा यह देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सेनक पण्डित को बुलाया, उसे सारी बात कही, फिर पूछा-"क्या अब महौषध पण्डित को बुला लें?".
सेनक बोला-"अभी नहीं, कुछ दिन और ठहरें। अभी और परीक्षा करनी है।" आठ मोड़ की मणि
देवराज शक्र द्वारा विदेह राज के पितामह नरेश को उपहार में दी गई एक विचित्र मणि थी । वह आठ स्थानों पर टेढ़ी थी--घुमावदार थी। उसमें जो सूत्र पिरोया हुआ था, वह पुराना हो गया था। उस पुराने सूत्र-धागे के स्थान पर कोई भी नवीन धागा नहीं पिरो सकता था; क्योंकि मणि का छिद्र आठ स्थानों पर टेढ़ा था। टेढ़े छिद्र में धागा कैसे पिरोया जाए। राजा ने वह मणि प्राचीन यवमझक ग्राम में भिजवाई और ग्रामवासियों को कहलवाया कि इस मणि का पुराना धागा निकाल दें तथा इसमें नया पिरो दें।
ग्रामवासी वैसा नहीं कर सके। उन्होंने महौषध पण्डित को सारी बात कही।
महौषध बोला- "आप लोग चिन्ता न करें । यह कार्य मैं करूँगा। उसने शहद मंगवाया, मणि के दोनों छिद्रों पर शहद लगाया । कम्बल का ऊन का एक धागा लिया। उसे बँट कर मजबूत किया उसके किनारे पर शहद लगाया। मणि को चींटियों के एक बिल के समीप रखा। चींटियों की घ्राण-शक्ति बड़ी तीव्र होती है। शहद की गन्ध से आकृष्ट होकर चींटियां बिल से बाहर निकल आई। मणि के छिद्र में पहुंचीं। मणि के दोनों सिरों पर मधु लगाये जाने से छिद्र स्थित पुराना धागा मधुसिक्त हो गया था, मीठा हो गया था, चींटियाँ उसे खाती हुई दूसरे सिरे से बाहर निकल गईं। फिर नये धागे के शहद लगे सिरे के आगे के भाग को मणि के छिद्र में प्रविष्ट किया। मधु से आकृष्ट चींटियां वहां पहुंचीं। उन्होंने उस नुतन धागे के सिरे को मुंह में लिया। धागे को आगे-से-आगे खींचती हुई मणि के छिद्र के दूसरे छोर से वे बाहर निकलीं। इस प्रकार महौषध पण्डित ने अपने प्रज्ञा-प्रकर्ष द्वारा आठ स्थानों पर टेढ़ी मणि में धागा पिरो दिया। उसने वह मणि गांववासियों को दी।
गांववासियों ने मणि को राजा के यहाँ भिजवा दिया। राजा ने यह जानना चाहा कि मणि में धागा पिरोने का उपाय किसे सूझा ?
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