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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २३६ सेनक ने कहा-'राजन् ! अभी कुछ ठहरें, अन्य प्रकार से भी परीक्षा लेंगे।" दो खोपड़ियां राजा ने एक दिन स्त्री तथा पुरुष का सिर--खोपड़ियां मंगवाईं। उन्हें प्राचीन यवमझक गाँव में भेजा। गाँव-वासियों को कहलाया कि पता लगाओ और बतलाओ कि इन दोनों में स्त्री का सिर कौन-सा तथा पुरुष का सिर कौन-सा है ? पता नहीं लगा सकोगे तो एक सहस्र मुद्राएं दण्ड स्वरूप देनी होंगी। गांव वासियों ने पता लगाने का प्रयत्न किया, पर उनको मालूम नहीं हो सका। उन्होंने महौषध पण्डित से पूछा। महौषध को तो देखते ही पता लग गया। वह जानता था कि पुरुष की खोपड़ी की सीवन-- अस्थि-योजकता सीधी होती है और स्त्री की टेढ़ी तथा घुमावदार। अपने इस ज्ञान द्वारा महौषध पण्डित ने यह बतला दिया कि कौन-सा स्त्री का सिर है तथा कौन-सा पुरुष का सिर है ? तदनुसार गांववासियों ने राजा को कहलवा दिया। राजा यह सुनकर बहुत हर्षित हुआ और उसने जिज्ञासित किया कि यह भेद किसने बतलाया ? ग्रामवासियों ने कहलवाया- 'श्रीवर्धन सेठ के पुत्र महौषध कुमार ने यह पता लगाया।" राजा ने सेनक पण्डित को बुलाया, उसे सारी बात बतलाई और पूछा-"क्या महौषध पण्डित को यहाँ बुला लें?" सेनक बोला- "देव ! अभी ठहरें। महौषध की और परीक्षा लेंगे।" सांप तथा सांपिन राजा ने एक दिन एक साँप और एक साँपिन प्राचीन यवमझक गाँव में भिजवाए। गांववासियों से कहलवाया कि वे पता लगाएं इनमें साँप कौन-सा है, साँपिन कौन-सी है ? गाँववासी पता नहीं लगा सके । उन्होंने महौषध पण्डि- से पूछा। महौषध पण्डित यह जानता था कि साँप की पूंछ मोटी होती है तथा साँपिन का पतली होती है। साँप के नेत्र बड़े-बड़े होते हैं और साँपिन के छोटे । उसने अपने इस ज्ञान द्वारा बतला दिया कि सर्प कौन-सा है तथा सर्पिणी कौन-सी है। गांववासियों ने साँप और साँपन को अपने उत्तर के साथ राजा के यहाँ भिजवा दिया। राजा इससे बहुत प्रसन्न हुआ। उसने यह जानने की उत्सुकता व्यक्त की कि यह रहस्य किसने प्रकट किया ? ग्रामवासियों ने कहलवाया-"श्रीवर्धन सेठ के पुत्र महौषध पण्डित ने यह रहस्य खोला।" राजा ने सेनक पण्डित को बुलाया, सारी घटना उसे बतलाई तथा यह पूछा- क्या महौषध पण्डित को यहाँ बुलवा लिया जाए ?" सेनक बोला- "कुछ रुकें, अभी नहीं। उसकी और भी परीक्षा लेंगे।" Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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