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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २३७ से पकड़े हुए साथ-साथ चलो । ध्यान रहे, जो रथ का मालिक होगा, वह रथ नहीं छोड़ेगा। जो मालिक नहीं होगा, वह रथ को छोड़ देगा।" महौषध ने अपने एक अनुचर को आज्ञा दी कि रथ को हांके चलो। परिचर ने अपने स्वामी के आदेशानुसार किया। रथ चलने लगा। वे दोनों व्यक्ति रथ को पीछे से पकड़े हुए चलने लगे। थोड़ी दूर जाकर रथ महौषध की पूर्व योजनानुसार तेज हो गया। रथ का मालिक रथ के बराबर नहीं भाग सका। उसने रथ को छोड़ दिया। वह एक ओर खड़ा हो गया। शक तो दिव्य प्रभाव युक्त था। उसे थकावट कैसे होती ? वह रथ के साथ दौड़ता गया। महौषध पण्डित ने रथ को रुकवाया। अपने मनुष्यों को बुलाकर कहा- "देखो, इस व्यक्ति ने कुछ ही दूर जाकर रथ को छोड़ दिया, दूसरी ओर खड़ा हो गया, किन्तु, एक यह है, जो रथ के साथ भागता रहा। जहां रथ रुका, वहीं यह रुका। इसकी देह पर स्वेद की एक बूंद तक नहीं है। न इसका साँस ही हांपा है, फूला है। यह निडर है । इसकी पलकें नहीं झपकतीं। वास्तव में यह देवराज शक्र है।" यह कहकर उससे पूछा"क्या तुम देवराज हो ?" शक्र ने कहा-"हां।" महौषध पण्डित ने पूछा-“यहाँ किसलिए आये?" शक्र—"पण्डित ! तुम्हारी प्रज्ञा को स्थापित करने के लिए।" महौषध- भविष्य में ऐसा मत करना।" देवराज शक्र ने अपना दिव्य प्रभाव दिखलाया। वह अन्तरिक्ष में अधर अवस्थित हुआ। महौषध पण्डित की स्तवना की तथा कहा- "आपने विवाद का बड़ा सही फैसला किया।" ऐसा कहकर शक्र अपने लोक में चला गया। यह सब देखकर वह अमात्य, जो महौषध पण्डित की परीक्षा उद्दिष्ट किये प्राचीन यवमझक गांव में टिका था, स्वयं राजा के पास आया और बोला-"महाराज ! महौषध पण्डित ने बड़े बुद्ध-कौशल से दो स्त्रियों के कंठी के झगड़े, सूत के गोले का विवाद, यक्षिणी द्वारा बालक-हरण, गोलकाल और दीर्घताड़ विवाद तथा रथ पर कब्जे सम्बन्धी विवादों का फैसला किया है , आश्चर्य की बात तो यह है कि उसने देवराज शक्र को भी पराभूत कर दिया। ऐसे विशिष्ट प्रज्ञाशील पुरुष से आप क्यों नहीं परिचय करते ?" राजा ने सेनक पण्डित को बुलवाया, उससे पूछा-"सेनक ! क्या महौषध पण्डित को बुलवा लें?" सेनक बोला-"राजन् इतनी-सी बातों से कोई पण्डित नहीं होता । अभी कुछ और परीक्षा कर विशेष जानकारी करेंगे।" खदिर की लकड़ी महौषध पण्डित की परीक्षा करने के लिए राजा ने एक खदिर की लकड़ी मंगवाई। उसमें से लगभग एक बालिश्त टुकड़ा कटवाया। उस टुकड़े को एक खरादी काष्ठकार के पास भेजा । उस पर भली-भांति खराद कटवाकर, सफाई करवाकर, उसे एक-सा बनवाकर राजा ने उसको प्राचीन यवमझक ग्राम भिजवाया। ग्रामवासियों को उद्दिष्ट कर कहलवाया- "यवमझक ग्राम के निवासी पण्डित हैं, यह पता लगाएं कि इस लकड़ी की Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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