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आगम और त्रिपिटक:
[खण्ड : ३
के कथन के अनुरूप हैं या गोलकाल के कथन के अनुरूप हैं ? दोनों में से किसके साथ उनका समन्वय होता है ?"
लोग बोले-"इनका समन्वय गोलकाल के कथन के साथ होता है। ये, उसने जो कहा, उससे मेल खाते हैं।"
महौषध पण्डित ने सारी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा- "इस स्त्री का पति गोलकाल है । दीर्घपृष्ठ चोर है।"
पूछने पर दीर्घपृष्ठ ने भी अपना चोर होना स्वीकार कार लिया। स्त्री गोलकाल को दिलवा दी।
रथ पर कब्जा
__एक व्यक्ति अपने रथ पर सवार हुआ। शौच आदि से निवृत्त होने बाहर निकला। तब देवराज शक्र ने सोचा-इस समय महौषध पण्डित के रूप में बुद्धांकर-बोधिसत्त्व जगत में अवतीर्ण हैं । अच्छा हो, मैं महौषध पण्डित के प्रज्ञा-प्रकर्ष को लोगों के समक्ष प्रकट करूं । लोगों में उसे ख्यापित करूं । ऐसा विचार कर शक ने मनुष्य का रूप बनाया । वह रथ का पिछला भाग पकड़ कर पीछे-पीछे दौड़ने लगा।
रथारूढ पुरुष ने उसे इस प्रकार दौड़ते हुए देखकर प्रश्न किया--"तात् ! इस प्रकार क्यों दौड़ रहे हो?"
दौड़ते हुए पुरुष ने कहा- "आपकी सेवा करना चाहता हूँ। मेरे करने योग्य जो भी आपका कार्य हो, उसे संपादित करने का मुझे अवसर मिले, मेरी यह आकांक्षा है।"
रथारूढ़ पुरुष ने उसका कथन स्वीकार किया। रथ को रोका। उसे रथ का ध्यान रखने को कहा। स्वयं शौचादि से निवृत्त होने के लिए चला गया।
ज्योंही वह गया, शक्र रथ में बैठ गया तथा उसे रवाना कर दिया। रथ का स्वामी शौचादि से निवृत्त होकर, वापस आया। उसने उस व्यक्ति को रथ में बैठ आगे बढ़ते हुए देखा। वह भागकर उसके पास पहुँचा। उसने उसे डांटते हुए कहा-- "रुक जाओ, मेरा रथ लिये कहाँ चले जा रहे हो?"
शक्र बोला- ''यह मेरा रथ है। तुम्हारा रथ कोई और होगा।"
दोनों झगड़ने लगे । झगड़ते-झगड़ते वे महौषध पण्डित की शाला के दरवाजे के पास पहुँच गये। उनके झगड़ने का कोलाहल सुनकर महौषध पण्डित ने कहा- 'यह कैसा शोर है ?' उसने सारी स्थिति समझने के लिए रथारूढ़ पुरुष को, जो शक था, बुलाया। शक्र आया। महौषध पण्डित ने उसकी ओर गौर से देखा तो उसे प्रतीत हुआ, वह बहुत निर्भय है, उसकी आँखें नहीं झपकतीं। इन लक्षणों से उसने जान लिया कि यह शक है। दूसरा व्यक्ति, इस समय जिसके अधिकार में रथ नहीं है, वास्तव में रथ का मालिक है।
महौषध ने उन दोनों को झगड़े का कारण पूछा। दोनों ने रथ अपना-अपना बतलाया। एक दूसरे पर आरोप लगाया, वह रथ हथियाना चाहता है।
महौषध ने कहा- "मैं तुम्हारे झगड़े का फैसला करूँ तो क्या मंजूर करोगे?" दोनों बोले-"हम मंजूर करेंगे।" महौषध पण्डित ने कहा- "मैं रथ को रवाना करवाता हूँ। तुम दोनों रथ को पीछे
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