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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग – चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २३५
दीर्घपृष्ठ ने उस बौने की गर्दन पकड़ी, उसे धक्का दिया और कहा - "अरे नीच बौने ! यह तेरी पत्नी नहीं है, यह तो मेरी पत्नी है ।"
बोने ने अपनी पत्नी दीर्घताड़ का हाथ पकड़ लिया और कहने लगा-' - "ठहरो, कहाँ जाती हो ? सात वर्ष तक मेहनत-मजदूरी करने के बाद तुम मुझे प्राप्त हुई हो । तुम मेरी पत्नी हो ।”
झगड़ते-झगड़ते वे महौषध कुमार की शाला के पास पहुँच गये। शोर सुनकर काफी लोग एकत्र हो गये । महौषध पण्डित ने भी यह कोलाहल सुना । दीर्घपृष्ठ और गोलकाल को भगड़ते देखा। वे आपस में जो सवाल-जवाब कर रहे थे, वह सब सुना, स्थिति को समझा। फिर उन दोनों से पूछा - "यदि मैं तुम्हारे विवाद का फैसला करूं तो क्या तुम उसे मंजूर करोगे ?”
उन दोनों ने कहा - "हाँ, स्वामिन् ! हम मंजूर करेंगे।"
दोनों द्वारा इस प्रकार स्वीकार कर लिये जाने पर महौषव ने पहले दीर्घपृष्ठ को एकान्त में बुलाया तथा उससे प्रश्न किया- "तुम्हारा क्या नाम है ?" उसने कहा- "मेरा नाम दीर्घपृष्ठ है ।
महौषध - "तुम्हारी पत्नी का क्या नाम है ?"
दीर्घपृष्ठ को उस स्त्री का नाम ज्ञात नहीं था । उसने कल्पना से कोई और ही नाम बता दिया ।
महौषध - "तुम्हारे माता-पिता का क्या नाम है ?"
दीर्घपृष्ठ ने अपने माता-पिता का नाम बता दिया ।
महौषध - "तुम्हारी पत्नी के माता-पिता का क्या नाम है ?"
दीर्घपृष्ठ को ज्ञात ही नहीं था । वह कैसे बतलाता । उसने यों ही ऊटपटांग नाम बतलाये । महौषध पण्डित ने दीर्घपृष्ठ के साथ हुए उत्तर प्रत्युत्तर की ओर लोगों का ध्यान खींचा । दीर्घपृष्ठ को वहाँ से दूर भेज दिया। फिर गोलकाल को बुलाया । उससे भी वही प्रश्न किये ।
वह सब बातें यथार्थ रूप में जानता था । उसने ठीक-ठीक जवाब दिये । महौषध कुमार ने उसे भी वहाँ से दूर भेज दिया । फिर उसने दीर्घताड़ को बुलाया, उससे प्रश्न किया - "तुम्हारा क्या नाम है ?"
--"मेरा नाम दीर्घताड़ है । "
उसने कहा
महौषध — "तुम्हारे पति का क्या नाम है ? अपने नये किये पति का नाम उसे मालूम नहीं था, इसलिए उसने ऊटपटांग कोई नाम बता दिया ।
महौषध - "तुम्हारे माता-पिता का क्या नाम है ?"
दीर्घताड़ ने अपने माता-पिता का नाम ठीक-ठीक बता दिया ।
महौषध - "तुम्हारे पति के माता-पिता का क्या नाम है ? "
दीर्घताड़ को इस सम्बन्ध में कुछ भी ज्ञात नहीं था । फिर उसने यों ही कुछ कल्पित कर नाम बताये ।
महौषध पण्डित ने दीर्घपृष्ठ और गोलकाल को भी वहाँ बुला लिया । उन तीनों के सामने उसने वहाँ एकत्र लोगों से पूछा – “ इस स्त्री ने जो उत्तर- प्रत्युत्तर दिये, वे दीर्घपृष्ठ
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