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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : ३
उनकी बात और भाव-भंगी से वह समझ गया कि उन्हें पानी से डर लगता है । उसने कहा - "नदी बहुत गहरी है, इसमें बड़े-बड़े भयानक मच्छ हैं ।"
इस पर गोलकाल ने उससे पूछा - "तब तुम इसे कैसे पार करोगे ?"
दीर्घ पृष्ठ ने ' कहा - "यहाँ के मगरमच्छ हमसे परिचित हैं; अतः वे हमें पीड़ित नहीं करते ।"
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पति-पत्नी ने उससे कहा- “तो हमें भी नदी के पार ले चलो ।"
दीर्घपृष्ठ बोला - "बहुत अच्छा, ले चलूंगा ।"
उन्होंने उसे खाना दिया । उसने खाना खाया। खाना खाकर वह बोला – “मित्र ! तुम दोनों में से पहले किसे पार करूं ?”
गोलकाल ने कहा - "पहले मेरी भार्या को पार करो। फिर मुझे पार करना । " दीर्घ पृष्ठ ने कहा –"अच्छा, ऐसा ही करूंगा ।" यह कहकर उसने उस स्त्री को अपने कन्धे पर बिठा लिया। सारी खाद्य सामग्री और भेंट भी साथ में ले ली । वह नदी में उतरा । थोड़ी दूर चला । नदी गहरी है, यह दिखाने हेतु वह झुककर बैठ गया। बैठा-बैठा आगे सरकता गया ।
गोलकाल नदी के तट पर खड़ा था । सोचता था, इतने लम्बे मनुष्य की भी यह हालत है। नदी वास्तव में बड़ी गहरी है । मेरे लिए तो स्वयं इसे पार करना असंभव है ।
जब दीर्घपृष्ठ नदी के बीच में पहुँचा तो उसने गोलकाल की पत्नी से, जो उसके कन्धे पर बैठी थी, कहा - " भद्र े ! तुम मेरे साथ चलो। मैं तुम्हारा भलीभाँति पालनपोषण करूंगा। तुम्हें अच्छे-अच्छे आभूषण दूंगा। मेरे यहाँ अनेक नौकर-नौकरानियाँ तुम्हारी आज्ञा में रहेंगी । इस बौने से तुम्हारा क्या मेल ? यह तुम्हारी सुख-सुविधा के लिए क्या कर पायेगा ? "
उसका कथन सुनकर वह स्त्री ललचा गई । उसने अपने स्वामी का ममत्व छोड़ दिया । उसकी ओर आकृष्ट हो गई और बोली - "स्वामिन् ! यदि मुझे कभी न छोड़ने का वायदा करो तो मैं तुम्हारा कथन स्वीकार कर लूंगी।"
दीर्घपृष्ठ बोला -- "मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूंगा । सदा तुम्हारा पालन-पोषण
करूँगा।"
स्त्री ने कहा - " बहुत अच्छा, मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।"
दोनों नदी के दूसरे किनारे पर पहुँच गये । गोलकाल से, जो उनकी ओर देख रहा था, कहा - "तुम यहीं पड़े रहो, हम जा रहे हैं ।" यह कहकर उसके देखते-देखते वे पाथेय को खाते-पीते आगे बढ़ने लगे ।
गोलकाल समझ गया कि ये दोनों मिल गये हैं । मुझे यहीं छोड़कर भाग रहे हैं । मैं उन्हें पकड़ । वह इधर-उधर दौड़ा, नदी में कुछ उतरा, किन्तु, पानी में डूब जाने के भय से रुक गया । फिर उसे गुस्सा आया, उसने विचार किया चाहे जीवित रहूं या मर जाऊं, इनका पीछा करूंगा । वह नदी में प्रविष्ट हो गया, कुछ आगे बढ़ा तो उसे मालूम पड़ा, नदी तो बहुत छिछली है । दीर्घपृष्ठ ने नदी गहरी होने का कितना झूठा स्वांग रचा था । वह जल्दी-जल्दी नदी को पार कर गया । दौड़कर उसने दीर्घ पृष्ठ को जा पकड़ा और कहा – “अरे नीच ! तू मेरी पत्नी को कहाँ लिये जा रहा है ?"
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