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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २३३
.. जो लोग वहाँ एकत्र थे, उनसे पण्डित ने पूछा--- "बतलाओ, बच्चे के प्रति उसकी माता का हृदय सुकुमार होता है या अमाता का?"
लोगों ने कहा--"माता का हृदय सुकुमार होता है।"
पण्डित बोला-"बतलाओ, जो बच्चे को लिये खड़ी है, वह बच्चे की माता है या जिसने बच्चे को कष्ट पाते देखकर और नहीं खींचा, स्वयं छोड़ दिया, वह उसकी माता है ?"
लोग बोले-“पण्डित ! जिस स्त्री ने बच्चे को कष्ट पाते देखकर और नहीं खींचा, छोड़ दिया, वही उसकी माता है।"
पण्डित ने उनसे पुनः प्रश्न किया- 'जिसने इस बच्चे को चुराया, वह स्त्री कौन है ? क्या तुम पहचानते हो?"
लोग बोले-"पण्डित ! हम इसे नहीं पहचानते।"
पण्डित-"देखो, इसके नेत्र नहीं झपकते, वे लाल हैं, इसकी छाया नहीं पड़ती। इसको किसी प्रकार का संकोच नहीं है । यह दया रहित है।"
पण्डित ने उससे पूछा-"तू कौन है ?" वह बोली-"स्वामिन् ! मैं यक्षिणी हैं।"
पण्डित ने कहा-'अन्धी नारी ! तूने पूर्व जन्म में पापों का आचरण किया, जिसके परिणामस्वरूप इस जन्म में तू यक्षिणी के रूप में उत्पन्न हुई। इस जन्म में तुम फिर पाप कर रही हो । अरी ! तुम कितनी अज्ञान हो।"
महौषध पण्डित ने उसे समझा कर पंचशील स्वीकार करवाये।
बच्चे की माता ने अपना बच्चा लिया, पण्डित से कहा-"स्वामिन् ! आप दीर्घकालपर्यन्त जीवित रहें। इस प्रकार पण्डित की उसने स्तवना की तथा वह अपने बच्चे को लिये वहां से चली गई।
गोलकाल और दीर्घताड़
एक मनुष्य था । उसका नाम गोलकाल था। कुब्ज होने कारण गोल तथा काला होने के कारण काल ---इस प्रकार वह दोनों शब्दों के मेल से गोलकाल नाम से प्रसिद्ध था। उसने सात वर्ष तक एक घर में काम किया। वैसा कर, अर्थोपार्जन कर उसने शादी की। उसकी भार्या का नाम दीर्घताड़ था। एक दिन उसने अपनी पत्नी से कहा-'कल्याणी ! पूए तैयार कर। हम माता-पिता से भेंट करने अपने गाँव चलेंगे।" पत्नी ने वैसा करने से मना किया-"माता-पिता से मिलकर क्या करोगे ?" गोलकाल ने उसे फिर वही बात कही। पत्नी ने फिर मना किया। गोलकाल ने फिर आग्रह किया। पत्नी ने तीसरी बार फिर मना कर दिया। पर, वह नहीं माना। उसने पूए पकवाये, रास्ते में भोजन हेतु और भी खाद्य-पदार्थ लिये, माता-पिता को देने हेतु भेंट ली। पत्नी को साथ लिया और घर से रवाना हुआ।
कुछ दूर चलने पर मार्ग में एक छिछली नदी आई। उन दोनों को पानी से भय लगता था। उन्हें नदी को पार करने का साहस नहीं हुआ। वे दोनों नदी के तट पर ही खड़े रहे । इतने में दीर्घ पृष्ठ नामक एक आदमी नदी के किनारे घूमता-घामता वहाँ आ गया। उन्होंने उससे पूछा-"मित्र ! यह नदी गहरी है या छिछली ?"
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