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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २३१ बोधिसत्त्व ने वहाँ एकत्र लोगों को यह बतालाया और उस तरुण स्त्री से पूछा"तुमने चोरी की है या नहीं ?" वह बोली-"स्वामिन् ! मैंने चोरी की है।" इस घटना से महौषध पण्डित की बुद्धि-कौशल सर्वत्र विश्रुत हो गया। सूत का गोला कपास का एक खेत था। एक स्त्री उसकी रखवाली करती थी। रखवाली करते समय उसने खेत से कुछ साफ कपास ली। उससे बहत महीन सूत काता। उसका गोला बनाया। उसे अपने ओढने के वस्त्र के पल्ले में बांधा। जब वह खेत से गाँव जा रही थी तो मार्ग में महौषध पण्डित द्वारा निर्मापित पूष्करिणी में उसका स्नान करने का मन हआ। उसने अपने कपड़ों पर सूत का गोला रखा और वह स्नान करने के लिए पुष्करिणी में उत्तरी। ____एक अन्य स्त्री उधर से निकल रही थी। सूत के गोले पर उसकी दृष्टि पड़ी। उसके मन में लोभ उत्पन्न हुआ। उसने सूत का गोला अपने हाथ में उठाया, बड़े आश्चर्य के साथ उससे बोली- "माँ ! तुमने बहुत सुन्दर सूत काता है।" यह कहकर उसने सूत का गोला अपने पल्ले में डाल लिया और वहाँ से चलती बनो। दूसरी ने जब यह देखा तो वह शीघ्र पुष्करिणी से बाहर निकली, अपने वस्त्र पहने और उसके पीछे दौड़ी। उसका कपड़ा पकड़ कर बोली- “मेरा सूत का गोला लिये कहाँ भागी जा रही हो?" उसने उत्तर दिया-"मैंने तुम्हारा सूत का गोला नहीं लिया है। वह तो मेरा अपना है।" वे दोनों परस्पर झगड़ने लगीं । उन्हें झगड़ते देखकर लोग इकट्ठे होने लगे। महौषध पण्डित अपने साथी बालकों के साथ खेल रहा था। उसने उनकी आवाज सुनी, पूछा--"यह कसा शोर है ?" उसे दोनों स्त्रियों के झगड़ने की बात ज्ञात हुई। उसने दोनों को अपने पास बुलाया, उनका आकार-प्रकार देखते ही वह भांप गया कि उनमें चोर कौन-सी स्त्री है । फिर भी उसने उनसे पूछा- “यदि मैं झूठ, सच का फैसला करूं तो क्या तुम दोनों उसे स्वीकार करोगी?" उन्होंने उत्तर दिया-"स्वामिन् ! जो भी आप निर्णय देंगे, उसे हम स्वीकार करेंगे।" तब पण्डित ने उस स्त्री से. जिसने सूत का गोला चुराया था प्रश्न किया-"जब तुमने गोला बनाया, तब उसके भीतर क्या रखा था ?" वह स्त्री बोली-"स्वामिन् ! मैने भीतर बिनौला रखा था।" महौषध पण्डित ने दूसरी स्त्री से भी वही बात पूछी। दूसरी ने उत्तर दिया-"स्वामिन् ! मैंने तिम्बरू का बीज रखा था।" पण्डित ने उन दोनों स्त्रियों के कथन की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। उसने सूत गोला उधेड़ा। उधेड़ने पर उसमें तिम्बरू का बीज मिला। लोगों को उसे दिखाया । उस स्त्री से, जिसने गोला चुराया था, पूछा- “सच बता, तुमने सूत का गोला चुराया या नहीं ?" ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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