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________________ २३० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ कण्ठी का झगड़ा एक गरीब स्त्री थी। भिन्न-भिन्न रंगों के धागों में गाँठे लगा-लगाकर निर्मित कण्ठी उसने गले में पहन रखी थी। वह महौषध पण्डित द्वारा निर्मा:पत पुष्करिणी में स्नान करने गई। कण्ठी को गले में से निकाला, कपड़ों के ऊपर रखा, नहाने के लिए जल में प्रविष्ट हुई वह नहा रही थी कि एक तरुण स्त्री ने उस कण्ठी को देखा। उसके मन में उसे हथियाने की लिप्सा उत्पन्न हुई। उसने उसे हाथ में उठाया और उससे कहा-'मां ! कण्ठी बड़ी सुन्दर है। इसे बनाने में कितना व्यय हुआ है ? मैं चाहती हूँ, मैं भी अपने लिए ऐसी कण्ठी बनवाऊं। मैं इसे अपने गले में पहन कर नाप लेना चाहती हूँ। क्या ऐसा कर लूं?" कण्ठी की स्वामिनी सरल थी। उसने कहा-"क्यों नहीं, पहन कर देख लो।" उस तरुण स्त्री ने कण्ठी अपने गले में पहनी और चलती बनी। दूसरी ने देखा, उसकी कण्ठी पहनकर वह चली जा रही है तो वह तुरन्त पुष्करिणी से निकली, कपड़े पहने उसके पीछे दौड़ी। उसके कपड़े पकड़ लिये और बोली-'मेरी कण्ठी लिये कहाँ दौड़ी जा रही हो?" उस तरुण स्त्री ने कहा- मैंने तुम्हारी कण्ठी कब ली? मैंने तो मेरी अपनी कण्ठी गले में पहन रखी है।" उन दोनों को परस्पर झगड़ते देखकर लोग इकट्ठे हो गये। महौषध पण्डित उस समय शाला में बालकों के साथ खेल रहा था। उसने उन दोनों के झगड़ने की आवाज सुनी और पूछा--"यह किसकी आवाज है ?" उसे उन दोनों स्त्रियों के झगड़ने की बात बताई गई। महौषध ने उन दोनों को अपने पास बुलाया। उनकी आकृति से ही उसने भाँप लिया कि उनमें से किसने कण्ठी की चोरी की है। फिर भी उसने उनसे झगड़ने की बात पूछी तथा साथ-ही-साथ यह प्रश्न किया कि क्या तुम दोनों मेरा निर्णय स्वीकार करोगी? उन्होंने कहा--- "हाँ, स्वामिन् ! हम आपका निर्णय स्वीकार करेंगी।" तब महौषध पण्डित ने उस स्त्री से, जिसने कण्ठी चुराई थी, पूछा- तुम जब यह कण्ठी पहनती हो, तो कौन-सी सुगन्धि का प्रयोग करती हो-कौन-सा सुगन्धित पदार्थ लगाती हो?" _ स्त्री ने कहा- "मैं सर्व संहारक-सब प्रकार की सुगन्धियों को मिलाकर निर्मित सुगन्धि का प्रयोग करती हूं।" महौषध ने फिर दूसरी से पूछा- "तुम कौन-सी सुगन्धि लगाती हो?" उस स्त्री ने कहा--"स्वामिन् ! मैं एक गरीब महिला हूँ। मुझे सर्व संहारक सुगन्धि कहाँ से प्राप्त हो ? मैं सदा राई के पुष्पों की सुगन्धि का ही प्रयोग करती हूँ।" महौषध पण्डित ने एक थाली मंगवाई। उसमें पानी भरा। उस कण्ठी को उसमें डलवाया। फिर गान्धिक-- सुगन्धित पदार्थों के व्यवसायी, तज्ञ पुरुष को बुलाया, उससे कहा-“इस थाली के जल को संघकर पता लगाओ, इसमें किसकी गन्ध आती है ?" गान्धिक ने थाली के पानी को संघा और बताया कि इसमें राई के पुष्पों की गन्ध आती है। उसने कहा- "यह सर्व संहारक की गन्ध नहीं है, शुद्ध राई की है । यह तरुण स्त्री धूर्त है, असत्य-भाषण कर रही है। यह वृद्धा जो कहती है, वह सच है।" १. सध्वसंहारको नत्थि, सुद्धं कंगु पवायति । अलीकं भासतयं धुत्ती, सच्चमाहु महल्लिका ॥२॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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