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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग जातक २२६ ही मुझे नींद आ गई। जब मेरी नींद टूटी तो मुझे मेरे बैल नहीं दिखाई दिये। मैंने खोजकर इसे पकड़ा । बैल मेरे हैं, यह सत्य है। जिस गाँव से मैंने इन्हें खरीदा, वहाँ के सभी लोग इस बात को जानते हैं।
चोर ने कहा-"यह झूठा है। ये बैल मेरे हैं। मेरे घर की गाय से पैदा हुए हैं।"
पण्डित ने पूछा- "यदि मैं तुम्हारे विवाद का न्याय करूं तो क्या तुम मेरा निर्णय मानोगे?"
दोनों ने कहा- 'मानेंगे।"
पडित ने विचार किया, यह एक ऐसा प्रसंग है, जिससे लोग प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं। उसने जनता को भी अपने विश्वास में लेना अपेक्षित माना। इसलिए पहले उसने चोर से पूछा- "तुमने बैलों को क्या खिलाया तथा क्या पिलाया?"
चोर ने उत्तर दिया-"मैंने उनको तिल से बने लड्डू खिलाये, उड़द खिलाये और यवागू पिलाया।"
पण्डित ने तब बलों के स्वामी से पूछा- "तुमने इन्हें क्या खिलाया ?"
उसका उत्तर था-"स्वामिन् ! मैं तो तक गरीब आदमी हूँ। मेरे पास कहाँ यवाग है, कहाँ तिल के लड्डू हैं । मैंने इन्हें केवल घास खिलाया।"
पण्डित ने उन लोगों को, जो वहाँ एकत्र थे, ध्यान आकृष्ट करने हेतु राई के पत्ते मंगवाये । उनको ऊंखल में कुटवाया, जल के साथ बैलों को पिलाया। बैलों के विरेचन हुआ, तिनके ही बाहर निकले।
पण्डित ने लोगों को सम्बोधित कर कहा--''देख लो, सही स्थिति क्या है ?" फिर पण्डित ने चोर से पूछा-"तू चोर है या नहीं है ?" वह बोला- "स्वामिन् ! मैं चोर हूँ।" । बोधिसत्त्व- भविष्य में ऐसा कोई कार्य मत करना।"
बोधिसत्त्व के व्यक्तियों ने उसे एक ओर ले जाकर मुक्कों तथा लातों से बुरी तरह पीटा।
पण्डित ने तब उसे बुलाया और उपदेश देते हुए कहा-'देख, इस जन्म में तुझे चोरी का यह फल प्राप्त हुआ है । तुम बुरी तरह पीटे गये हो। परलोक में इससे भी कहीं अधिक कष्ट पाओगे । भविष्य में ऐसा कभी मत करना।"
बोधिसत्त्व ने उसे पाँच शील ग्रहण करवाये। अमात्य ने यह सब देखा था। उसने राजा को यथावत् रूप में यह समाचार प्रेषित
किया।
राजा ने सेनक पण्डित को बुलाया, उससे पूछा-क्या महौषध पण्डित को यहाँ
बुला लें?"
सेनक पण्डित ने उत्तर दिया--"राजन् ! बैलों के सम्बन्ध में छिड़े संघर्ष पर निर्णय देना कोई बहुत महत्त्वपूर्ण बात नहीं। अभी कुछ समय आप और प्रतीक्षा कीजिए।"
सेनक पण्डित से यह सुनकर राजा ने उपेक्षा करते हुए अपनी अमात्य को फिर उसी प्रकार का सन्देश प्रेषित करवाया।
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