________________
तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २२७
__ लोगों ने उत्तर दिया- "इस शाला का शिल्पी ने अपनी बुद्धि से निर्माण नहीं किया है। यह शाला श्रीवर्धन सेठ के पुत्र महौषध पण्डित के निर्देशानुसार बनी है।"
"महौषध पण्डित के क्या आयु है ?" "सात वर्ष पूर्ण किये हैं।"
पूर्व-द्वार से गये हुए अमात्य ने, राजा को जिस दिन स्वप्न आया था, उस दिन से गिनती लगाई तो पूरे सात वर्ष हुए। उसने राजा के पास अपना सन्देशवाहक भेजा, जिसने राजा को यह सन्देश निवेदित किया-"राजन् ! प्राचीन-पूर्व दिशावर्ती यवमज्भक नामक ग्राम में श्रीवर्धन सेठ का सात वर्ष का पुत्र है। उसका नाम महौषधकुमार है। उसने अपनी प्रतिभा द्वारा एक असाधारण शाला, पूष्करिणी तथा उद्यान का निर्माण किया है। आपकी मैं आज्ञा चाहता हूं, उस पण्डित को आपके पास ले आऊं या नहीं लाऊं?"
राजा ने जब यह सुना तो वह हर्षित हुआ। उसने सेनक पण्डित को बुलाया, उसे वह बात बतलाई और उससे पूछा- "क्या महौषध पण्डित को यहाँ बुलवाएं ?"
ईर्ष्यालु सेनक
सेनक पण्डित के मन में महौषध पण्डित के प्रति ईर्ष्या-भाव जगा। वह बोला"राजन् ! शाला आदि का निर्माण करवाने से कोई पण्डित नहीं हो जाता। इन सबका निर्माण कराना कोई बड़ी बात नहीं है।" राजा ने जब सेनक पण्डित का यह कथन सुना तो सोचा, इसके कथन में कुछ रहस्यपूर्ण तथ्य है। राजा चुप रहा। उसने अमात्य द्वारा भेजे गये दूत को अपने सन्देश के साथ वापस भेज दिया कि यवमझक ग्राम में रहकर परीक्षाविधि द्वारा वह उसकी सही परीक्षा करे।
मांस का टुकड़ा
। एक दिन की बात है, महौषधकुमार क्रीड़ा-मण्डल में जा रहा था। इतने में एक बाज कसाई के तख्ते पर झटपटा और उससे एक मांस का टुकड़ा उठाकर आकाश में उड़ गया। लड़कों ने देखा। उससे मांस का टुकड़ा छुड़ाने के लिए वे उसके पीछे दौड़े । लड़कों को अपने पीछे दौड़ते देख बाज भी डर से जहाँ-तहाँ भागने लगा। लड़के आकाश में उड़ते हुए बाज को देखकर उसका पीछा कर रहे थे; इसलिए मार्ग में पड़े पत्थर आदि से टकराकर, लड़खड़ाकर गिर पड़ते, वापस उठते, दौड़ने लगते। यों वे बड़ा कष्ट पा रहे थे।
महौषध पण्डित ने यह देखकर उनसे कहा-"क्या बाज से मांस का टुकड़ा छुड़ाऊं?" बालक बोले-"हां स्वामिन् ! छुड़ाएं।"
महौषध पण्डित ने कहा-“देखो, अभी छुड़ाता हूं।" इतना कहकर वह वायु-वेग से दौड़ा, बाज की छाया पर पहुँचा। वहाँ खड़े होकर जोर से आवाज की। उसका पुण्यप्रभाव ऐसा था कि वह आवाज बाज की कुक्षि को बेधकर जैसे बाहर निकल आई हो, वैसी अभिज्ञात हुई । बाज भयभीत हो गया। उसने मांस के टुकड़े को छोड़ दिया। जब बोधिसत्त्व
१. मंसं गोणो गण्ठित सुत्तं पुत्तो गोणरथेन च, दण्डो सीसं अही चेव कुक्कुटो मणि विजायनं, ओदनं वालुकञ्चापि तलाकुय्यानं गद्रभो मणि ।।१।।
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org