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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : ३ बोधिसत्त्व ने कहा - " निर्मीयमान लाला के एक भाग में अनाथों के आवास के लिए स्थान हो, एक भाग में अनाथ महिलाओं के लिए प्रसूतिगृह हो, एक भाग में 'आगन्तुक श्रमणों तथा ब्राह्मणों के लिए आवास-स्थल हो । उसके एक भाग में तदितर लोगों के लिए अवास स्थान हो तथा एक भाग में आगन्तुक व्यापारियों के लिए, सामान, माल असबाब रखने के लिए स्थान हो । भलीभांति इस प्रकार की संरचना करो ।” २२६ शिल्पकार ने बोधिसत्व के निर्देशानुरूप इन सबका निर्माण किया। साथ ही साथ आदेशानुसार शिल्पकार ने शाला के अन्तर्गत न्यायालय तथा धर्मसभा का निर्माण किया । इस निर्माण कार्य की परिसंपन्नता के अनन्तर बोधिसत्त्व ने चित्रकारों को बुलाया, रमणीय चित्रांकन हेतु उन्हें उत्तमोत्तम कल्पनाएँ दीं । चित्रकारों ने वैसी ही चित्र - रचना की । वह शाला देवराज इन्द्र की सुधर्मा सभा के सदृश प्रतीत होने लगी । I बोधिसत्त्व ने सोचा -- इतना सब तो हो गया है, किन्तु, यह पर्याप्त नहीं है । इतने से ही शाला, जैसी चाहिए, वैसी शोभित नहीं होती। यहाँ एक पुष्करिणी खुदवाऊं, यह वाञ्छनीय है । इसलिए उसने पुष्करिणी का खनन करवाया। शिल्पकार को बुलाकर अपनी कल्पना एवं योजना के अनुरूप पुष्करिणी का निर्माण करवाया। वह पुष्करिणी एक हजार जगह टेढ़ी थी- घुमावदार थी। उसके सौ घाट थे । उसका जल पाँच प्रकार के कमलों से ढंका था । उसकी सुन्दरता नन्दनवन की पुष्करिणी जैसी थी । उसके तट पर भिन्न-भिन्न प्रकार के पुष्प तथा फल वाले वृक्ष लगवाये, उद्यान तैयार करवाया, जो स्वर्ग के उद्यानजैसा था । उस शाला के अन्तर्गत धर्मानुगत श्रमणों, ब्राह्मणों तथा आगन्तुकों के लिए दानपरंपरा प्रारंभ की। बोधिसत्त्व का यह कार्य सर्वत्र विश्रुत हो गया । अनेक लोग वहाँ आने लगे । बोधिसत्त्व शाला में बैठता, आगन्तुक लोगों को, उनके जीवन में क्या उचित है. क्या अनुचित है, क्या करने योग्य है, क्या नहीं करने योग्य है; इत्यादि बातें समझाता । लोगों के पारस्परिक विवादों और संघर्षों का निर्णय देता । उसका वह समय, व्यवस्थाक्रम वैसा था, जैसा बुद्ध के काल में था । बोधिसत्त्व की खोज विदेह राजा को स्मरण आया, सात वर्ष पूर्व उसके चारों पण्डितों ने उससे कहा था कि उन चारों को पराभूत करने वाला पाँचवाँ पण्डित होगा । राजा विचार करने लगा, यह तो सात वर्ष पूर्व की सूचना है, पता लगाऊं, वह पाँचवाँ पण्डित इस समय कहाँ है ? उसने अपने चार अमात्यों को बुलवाया और कहा - "आप लोग चारों द्वारों से अलग-अलग दिशाओं में जाएं और पता लगाए, पाँचवें पण्डित का आवास कहां है ?" उत्तर-दक्षिण तथा पश्चिम के द्वारों से गये अमात्यों को बोधिसत्त्व का, उसके आवास स्थान का कोई पता नहीं चला । पूर्व-द्वार से गये हुए अमात्य को आने पर प्राचीन यवमज्भक ग्राम में वह शाला दिखाई दी, जिसका बोधिसत्त्व को प्रेरणा तथा परिकल्पना से निर्माण हुआ था । अमात्य ने विशिष्ट रचना को देखकर अनुमान लगाया, इसका निर्माण करने वाला अथवा करवानेवाला अवश्य ही कोई पण्डित होगा । उसने वहाँ के लोगों से जानकारी चाही कि यह शाला किस शिल्पी द्वारा निर्मित की गई है ? Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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