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तत्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २२५ में लाया जाता। महौषधकुमार के रूप में विद्यमान बोधिसत्त्व उनके साथ खेलता, क्रीड़ा करता, विनोद करता।
बाल-क्रीड़ा
इस प्रकार खेलते हुए, बढ़ते हुए उसकी आयु सात वर्ष की हुई, तब वह ऐसा सुन्दर एवं देदीप्यमान प्रतीत होता, मानो स्वर्णमयी प्रतिमा हो। जब शिशु गाँव के मध्य महौषध कुमार के साथ खेलते तो बीच में कभी-कभी कोई हाथी आ जाता, दूसरे जानवर आ जाते । बच्चों का क्रीड़ा-मण्डल मग्न हो जाता । जब तेज हवा चलती, धूप होती तो खेलते हुए बच्चे कष्ट पाते। एक दिन का प्रसंग है, बच्चे खुशी-खुशी खेल रहे थे। असमय में ही आकाश में बादल घिर आये। यह देखकर हाथी के सदृश बलयुक्त महौषधकुमार भागकर एक मकान में चला गया। दूसरे बालक भी उसके पीछे-पीछे दौड़े। बहुत तेज दौड़ने के कारण कई परस्पर टकराये, लड़खड़ा गये, गिर पड़े, जिससे उनके घुटने फूट गये।
क्रीड़ा-भवन का निर्माण
महौषधकुमार ने विचार किया, खेल आदि में कष्ट न हो, इस हेतु यहां एक क्रीड़ा. भवन का निर्माण होना चाहिए। उसने बालकों से कहा-"हम लोग यहाँ एक शाला का निर्माण कराएं, जिससे आँधी, आतप तथा वृष्टि के समय खड़े होने, बैठने एवं लेटने के लिए समुचित आश्रय प्राप्त हो सके। इस हेतु तुम सब एक-एक काषार्पण लाओ।" उन हजार बालकों ने वैसा ही किया। महौषधकुमार ने शिल्पी को बुलाया, हजार काषार्पण दिये और कहा-"हमारे लिए एक शाला तैयार करो।" शिल्पी ने वैसा करना स्वीकार किया और काषार्पण लिये । उसने जमीन बराबर करवाई, खंटे गड़वाये। भूमि के समीकरण हेतु सूत्र खींचा।
शिल्पी वह सब कर तो रहा था, किन्तु, वह बोधिसत्त्व का हार्द नहीं समझा था। बोधिसत्त्व ने उसे सूत्र खींचने की यथोचित विधि बतलाई और कहा-"जिस तरह तुम सूत्र खींच रहे हो, वह ठीक नहीं है। जैसा मैं बतला रहा हूँ, वैसा सूत्र खींचो।"
शिल्पी बोला-"स्वामिन् ! मैं जैसा शिल्प जानता हूँ, वैसा ही मैंने सूत्र खींचा। मैं दूसरी प्रकार नहीं जानता।"
बोधिसत्त्व ने कहा-"जब तुझे इतनी ही जानकारी नहीं है तो हमारी भावना के अनुरूप शाला का निर्माण तू कैसे कर पायेगा? ला, सूत्र मुझे दे। मैं स्वयं खींचकर तुझे बतलाऊंगा।"
बोधिसत्त्व ने सूत्र लिया और खुद उसे खींचा। ऐसा प्रतीत हुआ, मानो विश्वकर्मा ने स्वयं सूत्र खींचा हो। ऐसा कर उसने शिल्पकार से पूछा- "क्या ऐसा सूत्र खींच सकोगे?"
"स्वामिन् ! ऐसा नहीं हो पायेगा।"
"मेरी मन:कल्पना के अनुरूप मेरे निर्देशन के अनुरूप शाला का निर्माण कर सकोगे ?"
"स्वामिन् ! कर सकूँगा।"
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