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________________ २२० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ समझ में आ गया, किन्तु, मिट्टी के ढेले वाली बात राजा नहीं समझ सका। रोहक ने वह मिट्टी का ढेला राजा को भेंट किया । राजा आश्चर्य-चकित हुआ तथा उससे मिट्टी का ढेला भेंट करने का कारण पूछा। रोहक ने कहा-"पृथ्वीपते ! आप पृथ्वी का पालन करते हैं, पृथ्वी-पति कहे जाते हैं, पृथ्वीनाथ कहे जाते हैं, भूपति, भूमिपति, महीपाल , भूपाल तथा भूप आदि कहे जाते हैं। आप के इन सभी वाचक शब्दों में भूमि का योग है । भूमि मृतिकामय है, मिट्टी से बनी है; इसलिए मैंने आपको मिट्टी भेंट की है, जिसमें आपके उत्तरोत्तर उत्कर्ष, राज्य-विस्तार आदि की शुभाशंसा है।" रोहक के समाधान से राजा अत्यन्त आनंदित हुआ । राजा ने रोहक को अपने महल में ठहरने के लिए कहा तथा मन-ही-मन विचार किया, कुछ समय व्यतीत हो जाए, रोहक को मैं मन्त्रि-पद पर नियुक्त करूंगा। रोहक महल में ठहरा। रात का समय था। प्रथम प्रहर था। रोहक सोया था। राजा ने आवाज दी"रोहक ! सोये हो या जाग रहे हो?" रोहक बोला- "राजन् ! मैं जाग रहा हूँ।" राजा-"फिर चुप क्यों हो?" रोहक-"मैं कछ चिन्तन कर रहा हूँ।" राजा-"क्या चिन्तन कर रहे हो?" रोहक..---"मैं यह चिन्तन कर रहा हूँ कि बकरी के पेट में गोल-गोल मेंगनियाँ क्यों बनती हैं ?" राजा-"तुमने चिन्तन में क्या पाया ?" रोहक-"बकरी के उदर में संवर्तक नामक वायु-विशेष का संचार रहता है। उसकी गति बकरी के उदर में गोल-गोल मेंगनियाँ बनने का कारण है।" रात का दूसरा प्रहर आया। राजा ने कहा- "रोहक ! सोते हो या जागते हो?" रोहक-"स्वामिन् ! जाग रहा हूँ।" राजा-"फिर चुप क्यों हो?" रोहक-"कुछ सोच रहा हूँ ?" राजा-"क्या सोच रहे हो?" रोहक-"यह सोच रहा हूँ कि पीपल के पत्ते का नीचे का डंठल बड़ा होता है या उसके ऊपर का हिस्सा ?" राजा-"इस सम्बन्ध में तुम्हारे चिन्तन में क्या आया? तुमने क्या निश्चय किया?" रोहक-"राजन् ! दोनों बराबर होते हैं।" रात के तीसरे प्रहर में भी राजा ने वैसा ही प्रश्न किया। रोहक ने कहा ...."महाराज ! मैं जागरित हूँ और यह चिन्तन कर रहा हूँ कि गिलहरी के पृष्ठ पर काली रेखाएँ ज्यादा होती हैं या सफेद रेखाएँ ? साथ-साथ यह भी सोच रहा हूँ कि उसकी देह बड़ी होती है या पूंछ ?" "राजा-"तुम्हें कैसा लगा ?" Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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