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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग — चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २१६ पूर्व के वन को पश्चिम में करो
राजा ने सोचा- रोहक की एक परीक्षा और ले लूं । वह इसमें सफल रहा तो उज्जायनी बुला लूंगा ।
राजा ने नटों के पास सन्देश भेजा कि तुम्हारे नट-ग्राम की पूर्व दिशा में एक वन है, तुम पश्चिम दिशा में कर दो ।
उसको
"
गाँव के नट बड़ी उलझन में पड़े कि वन को पूर्व दिशा से उठाकर पश्चिम दिशा में कैसे लाया जा सकता है। रोहक ने उन्हें इस समस्या का समाधान देते हुए कहा - " अपन लोगों को चाहिए कि वन के दूसरी ओर जाकर अपना गाँव बसा लें ।' फूस की झोंपड़ियाँ, मिट्टी के कच्चे घर वन की दूसरी ओर बना लिए। फलतः वह वन स्वयं ही नटों के गाँव की पश्चिमी दिशा में हो गया ।
राजा को यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई । राजा ने अब तक जितने भी प्रकार से परीक्षा की, रोहक उन सब में उत्तीर्ण हुआ । अब राजा के मन में उसे अपने पास बुलाने की तीव्र उत्कंठा उत्पन्न हुई ।
अन्तिम परीक्षा
राजा ने रोहक को उज्जयिनी बुलाने के अवसर पर भी उसकी बुद्धि का करिश्मा देखना चाहा; अत: रोहक को बुलाने हेतु राजा ने जिन पुरुषों को भेजा, उनके साथ उसे देने हेतु एक सन्देश भी भेजा - "रोहक उज्जयिनी आए, किन्तु, वह ऐसा समय हो, जब न शुक्लपक्ष हो तथा न कृष्णा-पक्ष हो, न रात हो, न दिवस हो । इसी प्रकार जब वह आए तो उसके मस्तक पर न धूप हो, न छाया हो । न वह आकाश द्वारा आए, न पदाति ही आए, न चलकर ही आए । न वह नहाकर आये तथा न वह बिना नहाए ही आए ।"
राजा ने जो बातें कहलवाईं, वे परस्पर एक दूसरे के विरुद्ध थीं; इसलिए उन्हें पूरा करना बड़ा कठिन था । राजा तो इन बातों द्वारा रोहक की प्रत्युत्पन्नमति का चमत्कार देखना चाहता था । रोहक से राजा ने जो-जो चाहा, उसने उन सबकी भलीभाँति पूर्ति की । जब रोहक अपने गाँव से रवाना हो रहा था, उसने अपने गले तक स्नान किया, मस्तक को सूखा रखा । अमावस्या और प्रतिपदा के परस्पर मिलने के समय में वह वहाँ से चला । दोनों तिथियों के मिलने का यह समय न किसी पक्ष में था, न दिवस में तथा न रात में आता था । उसने आते समय अनगिनत छिद्रयुक्त चलनी को अपने सिर पर छत्र के रूप में रखा | चलनी के छेदों में से धूप छनती हुई आती थी तथा चलनी का बंद भाग छाया किये हुए था। इस प्रकार न तो एकान्त रूप में वहाँ धूप ही थी और न एकान्त रूप में छाया ही थी । आते समय रोहक एक मेंढे पर बैठा तथा गाड़ी के पहियों के मध्य के मार्ग से राजा के पास पहुंचा। जिस समय रोहक राजा के पास आया, तब सायंकालीन सन्ध्या का समय था, जो न दिन में गिना जाता है और न रात में गिना जाता है । इस प्रकार रोहक ने वे सभी शर्तें पूरी कीं, जो राजा ने रखी थीं !
रोहक ने विचार किया कि ऐसी परम्परा है, गुरु, देव तथा राजा के पास जाते समय कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए, उन्हें उपहृत करने हेतु कुछ-न-कुछ अपने साथ ले जाना चाहिए। यह सोचकर रोहक राजा को भेंट देने हेतु मिट्टी का एक ढेला लिए राजा के पास पहुँचा । राजा की शर्तों की जिस प्रकार रोहक ने पूर्ति की थी, वह सब तो राजा की
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सबने अपनी घास
वहीं बस गए।
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