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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : ३
वैसा कहने वाले के लिए राजा की ओर मृत्यु दण्ड निर्धारित था । वे चिन्तित थे कि हाथी के स्वास्थ्य के सम्बन्ध में कुछ भी सूचना न देने से राजा क्रुद्ध होगा तथा हाथी के मरने की सूचना देने का उनको साहस हो नहीं रहा था ।
उन सबकी आशा का केन्द्र रोहक था । उन्होंने उसके समक्ष अपनी चिन्ता उपस्थित की। रोहक ने उन्हें अच्छी तरह समझा दिया कि वे राजा को इसका क्या उत्तर दें । नट राजा के पास आये। उन्होंने राजा से कहा - "महाराज ! आप का हाथी तो अपनी जगह से उठता तक नहीं है । "
दूसरा बोला - " हाथी का उठना तो दूर रहा, उसके तो कान तक नहीं हिलते । उसके नेत्रों की पलकें तक नहीं झपकतीं, नेत्रों की पुतलियाँ भी स्थिर हैं ।" राजा ने कहा- "क्या हाथी की मृत्यु हो गई ?"
तीसरे ने कहा- "अन्नदाता ! हम तो ऐसा नहीं बोल सकते, पर, आपका हाथी न घास खाता है और न पानी ही पीता है ।"
चौथा नट बोला – “राजन् ! और बातें तो दूर रहीं, आपका हाथी सांस तक नहीं
लेता । "
राजा झुंझलाया और पूछने लगा - "सच - सच कहो; क्या हाथी मर गया ?"
नटों ने कहा- "अन्नदाता ! ऐसे शब्द हम कैसे कह सकते हैं ? ऐसा कहने के तो आप ही अधिकारी हैं। हाथी के स्वास्थ्य सम्बन्धी समाचार आप तक पहुँचाना हमारा काम है | उसके स्वास्थ्य की जैसी स्थिति है, हमने आपको निवेदित कर दी है ।"
नटों की बातचीत में रोक की बुद्धिमत्ता बोल रही है, यह राजा ने मन-ही-मन अनुभव किया । वह प्रसन्न हुआ । उसने नटों को पारितोषिक दिया । नट वापस अपने गाँव को आ गये ।
गाँव का कुआं नगर में भेजो
राजा इतना होने पर भी कुछ और परीक्षा करना चाहता था । उसने एक दिन नट-ग्राम के नटों के पास अपना संदेश भेजा - " तुम्हारे गाँव में एक कूआं है । उसका जल बहुत मधुर और शीतल है। हमारे नगर में ऐसा कूआं नहीं है । अपने गाँव के कुएं को हमारे नगर में भेज दो । यदि ऐसा नहीं कर सके तो तुम कठोर दंड के भागी बनोगे ।" ज्यों ही नटों को यह संदेश मिला, वे तो घबरा गए। वे रोहक से बोले - "पहले की तरह हमको तुम ही इस संकट से बचा सकते हो ।”
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रोहक ने राजा को कैसे उत्तर दिया जाए, यह युक्ति उनको बतला दी । तदनुसार वे नट राजा के पास आए और जैसा रोहक ने समझाया था, वे राजा से बोले -": — "महाराज हमारे गाँव का कुआं हम गाँव वासियों की तरह बड़ा भोला है । अकेले नगर में आने में उसे बड़ी कि है, संकोच है। वह कहता है कि मैं अपने जातीय जन --- उज्जयिनी के कुएं के साथ वहाँ जा सकता हूँ । अकेला नहीं जा सकता । अकेले जाने में बहुत झिझकता हूँ ।
"स्वामिन् ! आप से विनम्र निवेदन है, आप उज्जयिनी के किसी कुएं को हमारे साथ हमारे गाँव भेज दें । वहाँ से दोनों कूएं आपके पास आ जायेंगे ।"
उज्जयिनी - नरेश मुस्कुराया, मन-ही-मन समझ गया, यह रोहक की बुद्धि का
चमत्कार हैं ।
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