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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २१७
उज्जयिनी-नरेश ने मंद स्मित के साथ मुसकराते हुए नटों से पूछा-"सत्य बतलाओ, यह उपमा तुम लोगों को किसने बतलाई ?"
एक वृद्ध नट बोला- 'स्वामिन् ! हमारे गाँव में भरत नामक नट का पुत्र रोहक नामक बालक है । उसी ने यह युक्ति बतलाई है।"
राजा ने नटों को पुरस्कृत किया तथा वहाँ से विदा किया। रोहक की बुद्धिमत्ता पर राजा प्रसन्न हुआ। राजा अभी कुछ और परीक्षा करना चाहता था। बालू की रस्सी
राजा ने नट-ग्राम के लोगों को उज्जयिनी से संदेश भेजा-"तुम लोगों के गांव के पास जो नदी है, उसकी बालू बहुत उत्तम है। उस बालू की एक रस्सी बनाओ और उसे मेरे पास उज्जयिनी भेजो।"
गांव-वासी नटों ने संदेश सुना। संदेशवाहक को वापस विदा किया। उन्होंने रोहक के समक्ष यह प्रसंग उपस्थित किया। रोहक ने उनको उसका उत्तर समझाया और जाकर राजा को बताने के लिए कहा। गाँव-वासी रोहक द्वारा दिया गया समाधान भलीभांति हृदयंगम कर राजा के पास उज्जयिनी गये तथा उन्होंने राजा से निवेदित किया-“राजन् ! हम लोग तो नट हैं, रस्सी बनाने का हमें क्या मालम। कभी रस्सी बंटने का प्रसंग ही नहीं आया। हाँ, इतना अवश्य कर सकते हैं, यदि वैसी बनी हुई रस्सी देख लें तो ठीक उसकी प्रतिकृति-उस जैसी ही दूसरी रस्सी हम बना देंगे। आपका पुरातन संग्राहालय है। अनेक वस्तुओं के साथ वहाँ कोई-न-कोई बाल की रस्सी अवश्य होगी। वह रस्सी कृपाकर हमें एक बार भिजवा दें। उसे देखकर हम वैसी-की-वैसी बालू की रस्सी निश्चित रूप में बना देंगे।"
राजा जान गया कि ये नट रोहक की बताई हुई युक्ति से बात कर रहे हैं। राजा रोहक की सूक्ष्म-ग्राहिता तथा पैनी सूझ से बहुत प्रभावित हुआ।
मरणासन्न हाथी
उज्जयिनी-नरेश की हस्तिशाला का एक हाथी रुग्ण हो गया। हस्ति-चिकित्सकों ने हाथी को देखा और कहा कि इसका रोग असाध्य है, यह बच नहीं पायेगा। यह कुछ ही दिनों का मेहमान है। राजा ने विचार किया-इस मरणासन्न हाथी के माध्यम से रोहक के बुद्धि-कौशल की परीक्षा की जाए। यह सोचकर राजा ने वह मरणासन्न हाथी नट-ग्राम में भिजवा दिया। हाथी के साथ उसके खाने-पीने की काफी सामग्री भी भिजवा दी। साथ-हीसाथ राजा ने गाँव वालों को यह आदेश भिजवाया-"यह हाथी रुग्ण है। इसे पर्याप्त खाना पीना दें। इसकी सेवा करें तथा इसके स्वास्थ्य के सम्बन्ध में नित्य प्रति समाचार भेजते रहें, किन्तु, कभी भूलकर भी मुझे यह समाचार न दें कि हाथी की मृत्यु हो गई है। यदि किसी ने आकर यह समाचार दिया तो मैं उसे प्राण-दण्ड दंगा।"
नट बड़े भयभीत हुए। हाथी की भली-भाँति देख-रेख, सेवा-परिचर्या करते रहे। आखिर एक दिन हाथी की मृत्यु हो गई । नट बहुत दुःखित हुए, अब क्या करें। हाथी के स्वास्थ्य-सम्बन्धी समाचार नित्य-प्रति भेजने के क्रम के अंतर्गत राजा को सूचित करना आवश्यक था। किन्तु, हाथी के मरने का समाचार कहना उनके लिए दुःशक्य था; क्योंकि
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