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________________ २१६ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड :३ तरह लड़ना सीख गया है। इसे राजा के पास ले जाओ और कहो कि इसकी परीक्षा कर लें। रोहक ने नटों को वह विधिक्रम भी समझा दिया, जिसके द्वारा उसने मुर्गे को लड़ाकू बनाया था। उनको कहा कि राजा जब पूछे तो यह बता दें। नट मुर्गा लेकर राजधानी में गये । मुर्गा राजा को सौंपा। राजा ने मुर्गे के लड़ाकूपन की परीक्षा करने के लिए एक दूसरा मुर्गा उसके समक्ष छोड़ा। रोहक द्वारा प्रशिक्षित मुर्गे ने ज्योंही अपने सामने दूसरे मुर्गे को-एक प्रतिद्वन्द्वी को देखा, वह उस पर टूट पड़ा। बड़े वेग से उसने उस पर आक्रमण कर दिया और बड़ा विकराल होकर उससे लड़ने लगा। राजा उस मुर्गे का युद्ध-कौशल तथा आक्रामक रूप देखकर विस्मित हो उठा । उसने नटों से प्रदन किया-"दूसरे मूग के बिना तुम लोगों ने इसे लड़ने में कुशल कैसे बना दिया?" नटों ने राजा से निवेदन किया--"राजन् ! दीवार पर एक बड़ा शीशा लगा दिया गया। इस मुर्गे को वहाँ एकाकी छोड़ दिया। जब इस मुर्गे ने दर्पण में अपनी परछाईं देखी तो उसे दूसरा मुर्गा समझा। वैसा समझ कर वह शीशे पर झपटा। परछाईं में भी वैसी ही क्रिया हुई। मुर्गे ने सोचा-सम्मुखीन मुर्गा प्रत्याक्रमण कर रहा है। वह क्रुद्ध हो गया। शीशे पर बार-बार झपटता रहा, अपनी चोंच एवं नखों से उस पर प्रहार करता रहा। यह मुर्गा यों लड़ना सीख गया। कई दिन तक यह क्रम चलता रहा, जिससे यह लड़ने में अभ्यस्त हो गया, आक्रामक व लड़ाकू बन गया। मुर्गों के लड़ने के दो रूप हैं । कुछ मुर्गे, जब उन पर आक्रमण होता है तो अपनी सुरक्षा या बचाव के लिए लड़ते हैं। कुछ मुर्गे अपनी ओर से आक्रमण करते हैं। उनमें आक्रामक वृत्ति होती है। यह मुर्गा आक्रामक स्वभाव का हो गया है। राजा समझ गया कि यह रोहक की ही बुद्धि का चमत्कार है। बड़ा प्रभावित हुआ। गाड़ियों में भरे तिलों की गिनती राजा ने अपनी परीक्षा-योजना के अन्तर्गत एक बार तिलों से परिपूर्ण गाड़ियां नटों के गाँव में भेजी तथा नटों को संदेश भिजवाया कि इन गाड़ियों में भरे हुए तिल संख्या में कितने हैं, बतलाएं। यदि वे तिलों की ठीक-ठीक संख्या नहीं बता सके तो उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी। उनके लिए यह सर्वथा असंभव बात थी। नट घबरा गए, तिलों की गिनती कैसे हो। उन्होंने रोहक के आगे अपनी परेशानी की चर्चा की। रोहक ने कहा-"घबराओ नहीं। घबरा जाने से बुद्धि अस्त-व्यस्त हो जाती है, प्रतिभा की उर्वरता मिट जाती है । आप लोगों को मैं एक उत्तर बतला रहा हूँ। राजा के पास जाकर आप वही उत्तर दें।" जो उत्तर देना था, रोहक ने उनको अच्छी तरह समझा दिया। नट उज्जयिनी आये । राजा के समक्ष उपस्थित हुए। राजा द्वारा जिज्ञासित तिलों की संख्या के विषय में कहा-"महाराज ! हम नट हैं, नाचना-कूदना, खेल-तमाशे दिखलाना, कलाबाजी द्वारा लोगों का मनोविनोद करना हम जानते हैं, गिनने की कलागणित-शास्त्र हम कहाँ से जानें ! फिर भी हम आपको तिलों की तुलनात्मक संख्या निवेदित करते हैं। गगन-मंडल में जितने तारे हैं, इन गाड़ियों में उतने ही तिल हैं। आप अपने गणितज्ञों से तारों की गिनती करा लीजिए, दोनों एक समान निकलेंगे।" ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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