SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:३ संयोगवश उज्जयिनी का राजा भ्रमण करता हआ अकेला उधर आ निकला। वह रोहक द्वारा गीली बालू पर अंकित, चित्रित उज्जयिनी नगरी की ओर आगे बढ़ने लगा तो रोहक ने उसे मना किया--'महानुभाव ! इस ओर मत आइए।" राजा एकाएक चौंका । उसने बालक से पूछा-"क्यों भाई ! ऐसा क्यों कहते हो, क्या बात है ?" रोहक बोला—"इधर राज-प्रासाद है। बिना आदेश उसमें कोई प्रवेश नहीं कर सकता।" राजा ने रेखाचित्र को बहुत ध्यान से, सूक्ष्मता से देखा तो उसने अनुभव किया कि इसमें उज्जयिनी का अविकलतया यथार्थ अंकन है। वह बालक के नैपुण्य और रचनाकौशल पर मुग्ध हो गया। उसने पूछा-"बालक ! क्या तू उज्जयिनी में निवास करता है ?" रोहक ने कहा- "नहीं, महानुभाव ! मैं तो आज ही उज्जयिनी से आया हूँ। मेरे यहाँ आने का यह पहला अवसर है।" उज्जयिनी नरेश द्वारा परीक्षा राजा बालक की विलक्षण धारणा-शक्ति तथा प्रतिभा देखकर आश्चर्यान्वित हो गया। उसने बालक से उसका परिचय पूछा । बालक ने अपने पिता का नाम, गाँव का नाम आदि बतलाये । राजा ने मन-ही-मन बालक की बुद्धि की बड़ी प्रशंसा की और ऐसा विचार किया-कितना अच्छा हो, मैं इसे अपने यहाँ अमात्य-पद पर प्रतिष्ठित कर सकू । साथही-साथ राजा ने यह भी सोचा-अमात्य-पद पर मनोनीत करने से पूर्व मुझे इसकी और परीक्षा कर लेनी चाहिए । जब यह मेरे द्वारा की गई सभी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होगा, तब मैं इसे अपना अमात्य बनाऊंगा। ऐसा निश्चय कर उज्जयिनी-नरेश ने रोहक की बुद्धि की परीक्षा हेतु एक योजना-क्रम बनाया। पाषाण शिला को हटाये बिना उससे मंडप-निर्माण राजा ने नटग्राम के निवासियों को अपने पास बुलाया और उनको आज्ञा दी कि तुम्हारे ग्राम के निकट जो एक पाषाण-शिला पड़ी है, उसका एक मंडप बनाओ, किन्तु, यह ध्यान रहना चाहिए, मंडप का निर्माण करते समय शिला को अपने स्थान से जरा भी न हटाया जाए, न उठाया जाए। __ नट अपने गांव में लौटे। वे बहुत चिन्तित थे, शिला को अपने स्थान से हटाये बिना मंडप कैसे बनाएं। उनके लिए यह एक बहुत बड़ी समस्या थी। रोहक ने उनको कहा"इसमें चिन्ता करने जैसी कोई बात नहीं है, यह आसानी से हो सकेगा।" रोहक नटों को साथ लेकर शिला के समीप गया। उसने उनसे कहा-"पहले शिला के चारों कोनों की मिट्टी हटाओ।" नटों ने वैसा ही किया। जब शिला के चारों तरफ के किनारों की मिट्टी काफ़ी गहराई तक हटा दी गई तो रोहक ने शिला के चारों कोनों पर चार खंभे लगाने के लिए कहा । खंभे लगा दिये गये। शिला के टिकाव का सहारा हो गया। फिर उसने शिला के तल के नीचे की मिट्टी निकलवा दी। अपने आप मंडप तैयार हो गया ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy