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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग - चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २१३
रोह के नित्य प्रति के इस उपक्रम से भरत के मन में सन्देह उत्पन्न हो गया । उसने सोचा, रात को जो आदमी आता है, ऐसा प्रतीत होता है, मेरी पत्नी के साथ उसका अवैध सम्बन्ध है । बड़ा चालाक आदमी है। हाथ नहीं आता, सुरक्षित निकल जाता है । वास्तव में मैंने दूसरा विवाह कर बड़ी गलती की ।
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इस घटनाक्रम का परिणाम यह हुआ, भरत और उसकी पत्नी में परस्पर मनमुटाव एवं दुराव रहने लगा । भरत अपनी पत्नी की ओर से उदासीन रहने लगा और उसको उपेक्षापूर्ण दृष्टि से देखने लगा । इससे उसकी पत्नी बड़ी खिन्न तथा दुःखित रहने लगी । वह मन-ही-मन यह जान गई कि यह सब रोहक की ही करतूत है। उसने रोहक की प्रखर बुद्धिशीलता से हार मान ली ।
एक दिन वह रोहक से बोली - "पुत्र रोहक ! मैं तुझ से परास्त हो गई हूँ । अब तू अपनी यह माया संवृत करले । तूने अपनी बुद्धि द्वारा जो टूटन पैदा की है, उसे जोड़ में बदल दे। मैं भविष्य में सदा तेरे साथ सद्व्यवहार करती रहूगी ।
रोहक बोला- "ठीक है, वैसा ही करूंगा ।"
कृष्ण पक्ष व्यतीत हो गया । अंधेरी रातें चली गईं। चाँदनी रातें आईं। एक रात का प्रसंग है, रोहक पहले की ज्यों चिल्लाने लगा – “जरा ठहर, खड़ा रह, अभी आया ।" भरत हड़बड़ाकर उठा और बोला- “वह दुष्ट कहां है, जो प्रतिदिन यहाँ आता है ? पहले अंधेरी रातों का लाभ उठाकर भागने में सफल हो जाता था, आज चाँदनी रात है, उजियाले में मार-मारकर उसकी हड्डी-पसली तोड़ दूंगा । उसे आज ठीक करके छोड़ेगा ।"
रोहक बोला - " पिताजी ! देखिए, वह खड़ा है। "
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भरत ने कहा - " जरा मेरे साथ चलकर बता, वह किस ओर है ?
रोहक ने अपने पिता को साथ लिया तथा उसे अपनी परछाई दिखलाकर कहा--- "देखिए, यह खड़ा है, यही तो प्रतिदिन आता था और भाग जाता था । "
भरत हँस पड़ा और कहने लगा – “ सपने देखता है । बड़ा भोला है, यह तो भरत के मन में अपनी पत्नी के दूर हो गया। उसने अपनी पत्नी पर जो करने लगा । उस पर पूर्ववत् विश्वास करने लगा !
- "रोहक ! तू भयभीत हो गया ? संभवत: तू नित्य तेरी परछाई है ।"
प्रति जो संशय उत्पन्न हो गया था, वह अपने आप अनुचित बहम किया, उसके लिए वह पछतावा
रोहक की विमाता ने रोहक की बुद्धि का चमत्कार देखा । वह बहुत प्रभावित हुई । तब से रोहक के साथ अच्छा बर्ताव करने लगी ।
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उज्जयिनी में
एक दिन रोहक अपने साथियों सहित उज्जयिनी नगरी में गया । उज्जयिनी की कमनीय रचना, भव्य अट्टालिकाएँ, लम्बे-चौड़े, सजे-संवरे बाजार तथा साफ-सुथरे विशाल राजमार्ग देखकर रोहक बड़ा प्रभावित हुआ। वह अपने साथियों को लेकर क्षिप्रा नदी के किनारे गया । उज्जयिनी का स्वरूप उसके मस्तिष्क में था । उसने गीली बालू पर उसका रेखा चित्र तैयार किया ।
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