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________________ २१२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ माता का निधन यह भाग्य की एक विडम्बना थी, बचपन में ही रोहक की माता का निधन हो गया। रोहक के पिता भरत ने दूसरा विवाह कर लिया। घर में विमाता का आगमन हुआ, जो रोहक के लिए बड़ा प्रतिकूल सिद्ध हुआ। सौतेली मां रोहक के साथ बहुत दुर्व्यवहार करने लगी, उसे नाना प्रकार से कष्ट देन लगी। रोहक का पिता अपनी नव-परिणीता पत्नी के मोह में व्यासक्त था; इसलिए रोहक को अपनी सौतेली माँ के विरुद्ध पिता के समक्ष शिकायत करने का साहस ही नहीं होता था। क्योकि वह जानता था कि पिता उसकी सौतेली मां का ही पक्ष लेगा। रोहक अपनी सौतेली मां का क्रूर व्यवहार सहता गया, पर, सहने की भी एक सीमा होती है । वह सहते-सहते परिश्रान्त हो गया। वह एक मे घावी बालक था। उसने सोचा, अब मुझे अपनी बुद्धि से काम लेना चाहिए। एक दिन उसने अपनी सौतेली माता से कहा-"मां! मैं तो आपका पत्र ही हैं। आप मेरे साथ सद्व्यवहार क्यों नहीं करती ? जब भी मैं आपको देखता हूँ, मुझे आपके नेत्रों में मेरे प्रति घृणा तथा व्यवहार में क्रूरता दृष्टिगोचर होती है। ऐसा होना उचित नहीं है।" सौतेली मां को सबक सौतेली मां वास्तव में बड़ी निष्ठुर और स्नेह-हीन थी। उसने रोहक को बड़े दर्प के साथ कहा-"मैं तेरे साथ अच्छा सुलूक नहीं करती, यह जो तू कह रहा है, अच्छी बात है, तू मेरा क्या कर लेगा। जा, जो कर सके, तू कर ले।" रोहक बोला-"मां ! गर्व मत करो। मैं ऐसा करूँगा कि आपको मेरे समक्ष नमना पडेगा।" यह सुनकर विमाता बहुत क्रोधित हुई और बोली-"नीच कहीं का, धमकी देता है। जा, जैसा चाहे, तू कर । मुझे तेरी कोई परवाह नहीं है।" विमाता की घुड़की सुनकर रोहक चुप हो गया और अपनी बुद्धि द्वारा उसे सही मार्ग पर लाने की युक्ति सोचने लगा। ___ ग्रीष्म ऋतु थी। कृष्णा पक्ष की अंधेरी रातें थीं। रोहक अपने पिता भरत के पास सोता था। एक बार रात में रोहक एकाएक चौंककर उठा तथा कड़क कर बोला-"अरे ! यह कौन है, जो मेरे घर से निकल कर दौड़ा जा रहा है? जरा खड़ा रह, मैं अभी आता हूँ। रोहक को जब कड़क कर बोलते सुना तो पिता भरत की नीद टूट गई। वह सहसा हड़बड़ाकर उठा और उसने रोहक से पूछा-"बेटा ! कौन था ? तुम किसे डांट रहे थे? वह कहाँ गया ?" रोहक बोला- "अभी-अभी कुछ देर पहले मेरी आँख खुली तो मैंने देखा, एक आदमी घर के भीतर से निकला और बहुत देर तक यहाँ खड़ा रहा । जब मैंने उसकी तरफ देखा तो वह फौरन भाग छूटा।" रोहक रात के समय नित्य इसी प्रकार आवाजें लगाता। भरत यह सुनकर कि कोई बाहर का आदमी इधर आता है, लकड़ी लेकर उसे मारने दौड़ता। आदमी नहीं मिलता। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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