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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] श्रेणिक द्वारा चाण्डाल से विद्या-ग्रहण : छबक जातक २११ ४. चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक जैन-साहित्य एवं बौद्ध-साहित्य कथात्मक वाङमय की दृष्टि से बहुत समृद्ध हैं। अनेक विषयों पर संक्षिप्त, विस्तृत ऐसी कथाएँ विपुल परिमाण में प्राप्त हैं, जो शताब्दियों पूर्व लिखी गईं, किन्तु, जिनका महत्त्व आज भी उससे कम नहीं हुआ, जितना उनके रचना काल में था । वस्तुतः जिसे साहित्य कहा जा सके, उसकी यही विशेषता है, वह कभी पुरातन नहीं होता। उसमें प्रेषणीयता के ऐसे अमर तत्त्व जूडे होते हैं, जो उसे सदा अभिनव बनाये रखते हैं । पञ्चतन्त्र इसका उदाहरण है, जिसमें वर्णित कथाएँ, सारे संसार में व्याप्त हुईं; प्राच्य, प्रतीच्य अनेकानेक भाषाओं में अनूदित भी। जैन-साहित्य एवं बौद्ध-साहित्य में बुद्धि-प्रकर्ष की कथाओं का बड़ा सुन्दर समावेश है, जो रोचक भी है, बुद्धिवर्धक भी। मनोरंजन के साथ-साथ आज भी उन कथाओं द्वारा पाठक अपनी सूझबूझ को संवार सकता है। नन्दीसूत्र मलय गिरि वृहद् वृत्ति तथा आवश्यक चणि में परम मेधावी नट-पुत्र रोहक की कथा है। वैसी ही कथा महा उम्मग्ग जातक में है, जिसमें महौषध नामक पात्र की प्रखर प्रतिभा के अनेक उदाहरण हैं। पाषाण-शिला हटाये बिना उस द्वारा मंडप-निर्माण, परिपुष्ट मेंढा, एकाकी मुर्गे को द्वन्द्व-युद्ध का शिक्षण, गाड़ियों में भरे तिलों की गिनती, बालू की रस्सी, मरणासन्न हाथी, गाँव के कुएं को पुष्करिणी को, उद्यान को नगर में भिजवाये जाने का, पूर्व में स्थित वन को पश्चिम में करने का प्रस्ताव, साँप-साँपिन की पहचान, खोपड़ियों की परख, खदिर की लकड़ी इत्यादि कथाएँ, जहाँ कथानायकों की तीक्ष्ण बुद्धि का संसूचन करती हैं, वहाँ आज भी पाठकों को बौद्धिक अध्यवसाय की पुष्कल सामग्री प्रदान करती हैं। रोहक की कथा संक्षिप्त है । महौषध की कथा बहुत विस्तृत है। उसमें उसके बहुमुखी जीवन का, जिसमें उसके प्रज्ञोत्कर्ष के साथ अनेक घटनाक्रम जुड़े हैं, विवेचन है। दोनों ही कथानक बड़े रोचक हैं। साधारण और विज्ञ दोनों ही प्रकार के पाठकों के लिए आकर्षण लिये हैं। चतुर रोहक प्रत्युत्पन्नमति नट-पुत्ररोहक प्राचीन काल की बात है, उज्जयिनी नगरी के समीप एक छोटा-सा ग्राम था । उसमें अधिकांशतः नटों का निवास था । इसलिए वह नट-ग्राम के नाम से प्रसिद्ध था। उन नटों में एक भरत नामक नट था। उसके एक पुत्र था। उसका नाम रोहक था। वह अपने मातापिता को बहुत प्रिय था। ग्राम के अन्य नटों का भी उस पर बड़ा स्नेह था। रोहक एक संस्कारी बालक था। प्रत्युत्पन्नमति था, बड़ी सूझबूझ का धनी था। आयु में बड़े नट भी, जब उनके समक्ष कोई समस्या या उलझन आती तो रोहक से उसका समाधान पूछते । रोहक उन्हें बड़ी बुद्धिमानी से समस्या के साथ निपटने का मार्ग बताता। वे बहुत संतुष्ट होते। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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