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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:३
दुनियां बहुत बड़ी है
बोधिसत्त्व ने इस पर कहा-"ब्राह्मण ! इस जगह को छोड़कर तू और कहीं चला जा। यह दुनियां बहुत बड़ी है । संसार में और भी बहुत से प्राणी हैं, जो भोजन पकाते ही हैं । केवल इस राजा के ही भोजन पकता हो, ऐसा तो नहीं है। तेरे द्वारा किया गया यह अधार्मिक आचरण कहीं ऐसा न हो, जो तुम्हें उसी प्रकार तोड़ दे, ध्वस्त कर दे, जैसे पत्थर का ढेला घड़े को तोड़ डालता है। ब्राह्मण ! उस यश को धिक्कार है, उस धन-वैभव को धिक्कार है, जो नीच वृत्ति से--निम्न कोटि की आजीविका से या अधामिक आचरण से प्राप्त होता है।"
राजा द्वारा विनय का अवलम्बन
राजा इस कथन से बहुत प्रभावित हुआ, हर्षित हुआ, उससे पूछा--"तुम किस जाति के हो?"
वह बोला-"राजन् ! मैं चांडाल जाति का हूँ।"
राजा कहने लगा-"भो! यदि तुम उच्च जाति के होते तो मैं तुम्हें राज-पद दे देता खैर, फिर भी मैं यह तो करूंगा ही, अब से दिन का राजा मैं हंगा तथा रात्रि के राजा तुम होगे।"
राजा के गले में जो लाल पुष्पों की माला थी, राजा ने उसे अपने गले से निकालकर चांडाल के गले में डाल दिया और उसे नगर के कोतवाल-पद पर मनोनीत कर दिया। तब से नगर कोतवालों के गले में लाल फूलों की माला डाले जाने की परम्परा है।
राजा ने वेद-मंत्र सीखने के सन्दर्भ में चांडाल का उपदेश मान लिया । आचार्य का आदर करते हुए उनका आसन वह ऊपर रखने लगा, अपना आसन नीचे रखने लगा, उसी प्रकार बैठकर मंत्रों का शिक्षण लेने लगा ।
भगवान् ने कहा-"आनन्द उस समय राजा के रूप में था। चांडाल तो स्वयं मैं ही था।"
१. परिब्बज महालोको, पचन्तओपि पाणिनो ।
मा तं अधम्मो आचरितो, अस्मा कुम्भमिवाभिदा।। धिरत्थु तं यसलाभ, धनलाभञ्च ब्राह्मण । यो वुत्तिविनिपातेन, अधम्मचरणेन वा ॥
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