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________________ २०८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ अविनय से विद्या नहीं आती ___ अभयकुमार ने राजा के विद्या सीखने का क्रम देखा। राजा सिंहासन पर था, अभयकुमार बोला-"राजन् ! आपका शिक्षक जमीन पर बैठता है और आप जो शैक्ष हैं, विद्या सीख रहे हैं, ऊंचे आसन पर बैठते हैं। यह अविनय है। अविनय से विद्या नहीं सधती । विद्या सीखने के लिए विनय चाहिए।" विनय : सफलता . राजा तत्क्षण सारी बात समझ गया। उसने चाण्डाल के लिए आसन मंगवाया, जो उसके अपने आसन से ऊँचा था। पुनः विद्याभ्यास शुरू किया। विद्याएँ सिद्ध हो गई। राजा अपने वचन के अनुसार चाण्डाल को ससम्मान मुक्त कर दिया। वस्तुत: विद्यार्जन के लिए विनय बहुत आवश्यक है।' बबक जातक उपात्त प्रसंग "सव्वं इदं चरिमवतं"....... भगवान् बुद्ध ने जेतवन में विहार करने के अवसर पर षड्वर्गीय भिक्षुओं के सम्बन्ध में यह गाथा कही। भगवान् ने षड्वर्गीय भिक्षुओं को अपने पास बुलाया और उनसे पूछा--"भिक्षुओ ! क्या यह सही है, तुम नीचे आसन पर बैठकर उन लोगों को उपदेश देते हो, जो तुम्हारे से ऊंचे आसन पर बैठे हों ? "भन्ते ! यह सही है।" भगवान् ने उन भिक्षुओं की भर्त्सना, निन्दा करते हुए कहा-"भिक्षुओ ! ऐसा करना मेरे धर्म का अपमान करना है । मैं इसे अनुचित मानता हूँ। पुरातन पंडितों ने तो नीचे आसन पर स्थित हो बाह्यमन्त्रों की वाचना कराने वालों तक की आलोचनाभर्त्सना की है।" भगवान् ने यह कहकर पूर्व-जन्म की कथा का इस प्रकार आख्यान किया चाण्डाल-पत्नी का दोहद पुरावर्ती समय की बात है, वाराणसी में राजा ब्रह्मदत्त राज्य करता था। तब बोधिसत्त्व ने चांडाल जाति में जन्म लिया। वे बड़े हुए। अपने परिवार का लालन-पालन करने लगे। उनकी पत्नी गर्भवती हुई। उसे आम खाने का दोहद उत्पन्न हुआ। वह पति से बोली "स्वामिन् ! मेरी आम खाने की इच्छा है।" पति ने कहा – “भद्रे ! यह आम फलने की ऋतु नहीं है। उस प्रकार का दूसरा कोई आम्ल फल तुम्हारे लिए ला दूं?" पत्नी ने कहा- "स्वामी ! मेरी आम खाने की उत्कंठा है। आम मिलेगा तभी जी पाऊंगी। यदि नहीं मिल सका तो मेरा जीवित रहना असंभव होगा।" पति पत्नी पर आसक्त था। उसने सोचा-जैसा भी हो, मुझे आम लाना ही चाहिए। इस समय आम कहाँ मिल पायेगा, वह मन-ही-मन टोह करने लगा। उसके ध्यान में आया, वाराणसी के राजा के बगीचे में बारहों मास आम फलता है। उसने मन में निश्चय १. आधार-दशवकालिक चूणि, वृहत्कल्प-भाष्य, उपदेश पद ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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