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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] श्रेणिक द्वारा चाण्डाल से विद्या-ग्रहण : छबक जातक २०७ माली ने सोचा-हर कीमत पर अपने वचन का पालन करने वाली यह एक सत्यप्रतिज्ञ नारी है। इसके इसी गुण के कारण मार्ग में सभी ने इसके लिए कोई विघ्न खड़ा नहीं किया, इसे छोड़ दिया। मैं भी एक सत्य प्रतिज्ञ महिला को क्यों दुःखित करूं। माली ने उसे छोड़ दिया । वह वापस लौट चली। राक्षस ने जब माली की बात सुनी तो उसने मन-हीमन निश्चय किया, ऐसी स्त्री को नहीं खाना चाहिए। उसने उसे जाने दिया। इसी प्रकार चोरों ने जब माली और राक्षस की बात सनी तो वे भी प्रभावित हए। उन्होंने उसके आभूषण नहीं छीने। इस प्रकार वह अक्षत, अबाधित रूप में अपने पति के । सुरक्षित आ पहुंची। यह कथानक सुनाकर अभयकुमार ने उन लोगों से पूछा- "बतलाओ, इन लोगों में किसने सर्वाधिक दुष्कर—जिसे कर पाना बहुत कठिन हो, कार्य किया ?" उन लोगों में से वे, जो कामेा -जनित कुंठा से ग्रस्त थे, बोले- "उसके पति ने।" जो बुभुक्षित थे, बोले-"राक्षस ने।" परस्त्रीगामिता की कुत्सित प्रवृत्ति में जो फंसे थे, बोले-"माली ने।" राजा के उद्यान से आमों की चोरी करने वाला चाण्डाल भी उस मंडली में था । वह बोला-"चोरों ने।" अभयकुमार ने उनके उत्तरों पर गहराई से चिन्तन किया। झट उसके ध्यान में आ गया, जो जिस प्रवृत्ति में संलग्न होता है, उसकी दृष्टि सहजतया वैसे ही व्यक्ति पर जाती है। इस चाण्डाल की दृष्टि चोरों पर गई। निश्चय ही यह चोर-वृत्ति में लिप्त है। संभव है, इसी ने राजा के उद्यान से आम तोड़े हों। चाण्डाल बन्दी __ अभयकुमार ने उस चाण्डाल को बन्दी बना लिया, राजा के समक्ष उपस्थित किया। चाण्डाल भयभीत हो गया। उसने आम चुराना स्वीकार कर लिया। अपने कार्य-कलाप का विस्तृत ब्यौरा देते हुए उसने कहा-"अपने द्वारा अधिकृत अवनामिनी तथा अन्नामिनी नामक विद्याओं के सहारे मैंने चोरी की। राजा ने कहा-"चाण्डाल! जानते हो, राजा के उद्यान से आम तोड़ना कितना बड़ा अपराध है ! तुम्हें इसके लिए प्राण-दंड दिया जायेगा। किन्तु, एक शर्त है, यदि तुम ये विद्याएँ मुझे सिखा दो तो मैं तुम्हारा अपराध माफ कर सकता हूँ।" राजा द्वारा चाण्डाल से विद्या-शिक्षण चाण्डाल ने राजा को विद्याएँ सिखाना स्वीकार कर लिया। सीखने का क्रम शुरू हुआ। चाण्डाल यथाविधि विद्याएँ सिखाने लगा। एक विशाल राज्य के स्वामी होने के गर्व के कारण राजा विद्याभ्यास के समय भी उच्च आसन पर बैठता, चाण्डाल जमीन पर बैठता। विधिवत् अभ्यास करने पर भी राजा को विद्याएँ सिद्ध नहीं हुई। राजा ने अभयकुमार को बुलाया और कहा कि भली-भांति अभ्यास करने पर भी विद्याएँ सिद्ध नहीं हो रही हैं, क्या कारण है ? Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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