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________________ २०६ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड :३ इस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर अभयकुमार चोर की खोज में लग गया। एक रात को इधर-उधर घूमते हुए उसने देखा, एक स्थान पर बहुत से लोग एकत्र थे। वे एक गायक का इन्तजार कर रहे थे। अभयकुमार उस मंडली में शामिल हो गया। उनके बीच में बैठ गया। उसने कहा-'जब तक गायक न आए, एक कथानक ही सुन लो।" सभी प्रसन्न हुए, बोले-"बहुत अच्छा, सुनाओ।" अभयकुमार सुनाने लगा-एक श्रेष्ठि-कुल था। उस कुल में एक श्रेष्ठी था। वह परम्परया श्रेष्ठी था, वास्तव में वह निर्धन था। सेठ के एक कन्या थी। बड़ी रूपवती थी। वह एक बगीचे से चोरी से पुष्प तोड़कर ले जाती। उन पुष्पों से वह कामदेव की पूजा करती । एक बार वह माली की पकड़ में आ गई। माली ने चाहा, वह उसके साथ कामसेवन करे। कन्या उसका अभिप्राय समझ गई । वह गिड़गिड़ाती हुई बोली-“मैं अविवाहिता हूँ। मेरी इज्जत मत लूटो। तुम्हारे भी तो बहिन, भानजी होगी।" माली बोला-"तो इससे क्या हुआ? अनायास प्राप्त तुम्हें मैं कैसे छोड़ सकता हूँ। हाँ, एक शर्त पर बिना छुए तुम्हें मुक्त कर सकता हूँ। वह शर्त यह है, जब विवाहित हो जाक्षो तो तुम पहले मेरे पास आओ।" श्रेष्ठि-कन्या ने माली की शर्त स्वीकार कर ली। माली ने उसे मुक्त कर दिया। कुछ समय पश्चात् उसका विवाह हो गया। वह पति के घर गई। उसने अपने पति से अपने कौमार्य-काल में घटित उक्त वृत्तान्त बतलाया। अपना वचन पूरा करने हेतु उसने उद्यान में माली के पास जाने की अनुमति चाही। उसकी दृढ प्रतिज्ञा देखकर पति ने उसे अनुज्ञा दे दी। वह अपने घर से बगीचे की ओर रवाना हुई। मार्ग में उसे चोर मिल गये। उन्होंने उसे आभूषणों से भूषित देखा। मन में लोम उत्पन्न हुआ। वह अकेली तो थी ही, चोर आभूषण लूटने को उतारू हुए। उसने चोरों को सारा वृत्तान्त कहा और बोली --"वापस लौटते समय तुम लोग मेरे आभूषण उतार लेना।" चोर उसकी सत्यवादिता से प्रभावित हुए। उन्होंने उसे यह सोचकर छोड़ दिया कि जब वह वापस लौटेगी, तब उसके आभूषण उतार लेंगे। वह आगे बढ़ी तो उसे एक राक्षस मिला, जो छः महीनों से भूखा था। वह उसे खाने को ललचाया। श्रेष्ठि-कन्या ने राक्षस से भी अपनी सारी बात कही और उससे अनुरो किया कि वापस आते समय तुम मुझे खा लेना। पहले मुझे अपना वचन पूरा कर लेने दो। राक्षस ने भी जब उसका सच्चा वृत्तान्त सुना तो सोचा-अभी मुझे इसे छोड़ देना चाहिए। आते समय जैसा भी होगा, देखूगा। श्रेष्ठि-कन्या उद्यान में माली के पास पहुँची। माली ने उससे पूछा- "तुम कहाँ से आ रही हो?" श्रेष्ठि-कन्या बोली-'मेरा विवाह हो गया है। मैं अपना वचन पूरा करने आई माली ने साश्चर्य कहा-''तुम्हारे पति ने ऐसा करने की अनुज्ञा दे दी ?" वह बोली- मैंने पति को अपनी प्रतिज्ञा की बात बतलाई। वह सहमत हो गया। मैं अपने पति की आज्ञा से यहाँ आई हूँ।" मार्ग में और जो-जो घटित हुआ, श्रेष्ठि-कन्या ने सब माली को बतलाया। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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