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________________ xxiv आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ से सम्बद्ध श्लोक भी वहाँ उद्घत हैं । लिपि-विशेषज्ञों के अनुसार उन श्लोकों के लेखन की लिपि छठी शताब्दी की संभावित है । तदनुसार आयंशूर का समय उससे पहले का होना चाहिए। यह भी किंवदती है कि आर्यशूर ने कर्मफल विषय पर एक सूत्र की रचना की थी। ई० स० 434 में उसका चीनी भाषा में अनुवाद हुआ था । यदि इस किंवदती को सही माना जाए तो आर्यशूर का समय इससे पूर्व होना चाहिए । आर्यशूर एक ऐसा कवि था, जिसका हृदय निवृत्तिपरक आदर्शों तथा करुणा से ओतप्रोत था । उसने निश्चय ही अपनी कृति में करुणा की अमृत-स्रोत स्विनी प्रवाहित की है। अपने ग्रंथ के प्रारम्भ में ग्रंथ-रचना का अपना उद्देश्य व्यक्त करते हुए आर्यशूर ने लिखा है "मुनि-भगवान बुद्ध ने अपने पूर्व जन्मों में जो सद्गुणमय, मंगलमय, यशस्वी, पवित्र, मनोहर, अद्भुत कार्य किए, मैं भक्तिपूर्वक अपने काव्यात्मक कुसुमों द्वारा उनकी अर्चना करूंगा, श्लाघा करूंगा। इन प्रशंसास्पद उत्तम जीवन के प्रतीक सत्कर्मों के वर्णन से भगवान् बुद्ध का मार्ग-बोधिमार्ग प्रशस्त होगा। धार्मिक दृष्टि से जिनका मन नीरस है, उनमें प्रसन्नता-मृदुता, सात्त्विकता आदि का संचार होगा। धर्मकथाएं और रमणीयतर-और अधिक रमणीय मनोज्ञ बनेगी। जातक कथाओं के सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वान् प्रो० मैक्समूलर (Maxmuller) तथा स्पेयर (Speyer) का मत है कि उनमें बुद्ध के पूर्वजन्मों का वास्तविक वृत्तान्त नहीं है। वे परम्परा से चले आ रहे नीति एवं सदाचार मूलक औपदेशिक कथा-वाङ्मय से उपजीवित एवं विकसित हैं। वैसा साहित्य बुद्ध से पूर्व काल में भी प्रसृत था । बुद्ध एवं परवर्ती बौद्ध आचार्यों ने शील, सदाचार, करुणा, सेवा का उपदेश देने हेतु वैसे साहित्य का अपनी दृष्टि और पद्धति से उपयोग किया। अनुसंधायक विद्वानों के अनुसार बुद्ध से पूर्ववर्ती एवं परवर्ती काल में ऐसे कथात्मक साहित्य का व्यापक प्रसार रहा है। इस सन्दर्भ में ज्ञातव्य है, पंचतन्त्र तथा कथासरित्सागर भारत के दो पुरातन कथाग्रंथ हैं। पंचतन्त्र का पश्चिमी देशों में भी रूपान्तरण होता रहा। यद्यपि उसका पूर्वरूप यथावत् नहीं रहा, परिवर्तित होता गया, किन्तु, मूल ग्राही स्रोत संप्रवृत्त रहा । कथासरित्सागर का आधार गुणाढ्य की वृहत्कथा है, जो आज प्राप्त नहीं है। जातकों की अनेक ऐसी कथाएँ हैं, जो पंचतन्त्र तथा कथासरित्सागर की कथाओं से मिलता हैं। अस्तु--यह भारतीय कथा-साहित्य के विकास का एक स्वतन्त्र विषय है, अतः इस पर विशेष चर्चा-विश्लेषण न कर प्रस्तुत विषय के सन्दर्भ में इतना ही कहना पर्याप्त होगा, जातक भारतीय कथा-साहित्य की अत्यन्त गौरवमयी परम्परा अपने में संजोये हैं। जातक-साहित्य के अतिरिक्त बौद्ध-वाङ्मय में अश्वघोष के सौन्दरनन्द जैसी आख्यानात्मक शैलीमय उत्तम, रससिक्त कृतियां भी हैं, जिनमें काव्यात्मक सौन्दर्य के साथ कथानकों के माध्यम से नैतिक, चारित्रिक आदर्शों का निरूपण हुआ है। १. श्रीमन्ति सद्गुणपरिग्रहमंगलानि, कीास्पदान्यवगीतमनोहराणि । पूर्वप्रजन्मसु मुनेश्चरिताद्भुतानि, भक्त्या स्वकाव्य कुसुमांजलिनार्चयिष्ये ॥ इलाध्यरमीभिरभिलक्षितचिह्नभूतरादेशितो भवति यत्सुगतत्वमार्गः । स्यादेव रूक्षमनसामपि च प्रसादो, धा:कथाश्च रमणीयतरत्वमीयुः ।। ---जातकमाला १.२ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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