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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग [ कथानुयोग-राजा प्रदेशी : पायासी राजन्य १९७ हैं कि पायासी राजन्य का लोक, परलोक, जीव, पुनर्जन्म आदि के विषय में ऐसा मन्तव्य है कि इनका अस्तित्व नहीं है। "काश्यप ! यदि मैं अपने इन सिद्धान्तों का परित्याग कर दूं तो लोग मुझ पर ताने कसेंगे, व्यंग्य करेंगे कि पायासी राजन्य मूढ था, अज्ञ था, भ्रान्ति-ग्रस्त था। चाहे मुझे अपने लत सिद्धान्तों पर क्रोध आए, चाहे वे मुझे अप्रीतिकर लगें, चाहे उनके कारण मेरे मन में खिन्नता उत्पन्न हो तो भी मैं इन सिद्धान्तों को अपनाये रहूंगा।" काश्यप-"मैं एक उदाहरण द्वारा अपना विषय कुछ और स्पष्ट करता हूँ । प्राचीन काल की बात है, बहुत से व्यापारी बनजारे एक हजार गाड़ियों पर अपना माल लादे व्यापारार्थ पूर्व जनपद से पश्चिम जनपद की ओर जा रहे थे। वे जिन-जिन रास्तों से गुजरते, उस बीच आने वाले घास, काष्ठ तथा पत्र आदि वे नष्ट, ध्वस्त-विध्वस्त कर डालते । उन व्यापारियों का पांच-पाँच सौ गाडियों का एक-एक काफिला था--वे दो काफिलों में अन्तविभक्त थे, जिनमें से प्रत्येक का एक-एक अधिनायक-मुखिया था। दोनों अधिनायकों ने सोचा, एक हजार गाड़ियों का समवेत रूप में गमनशील हमारा भारी काफिला है, हम लोग जहाँ भी जाते हैं, तृण, काष्ठ, पत्र आदि नष्ट-भ्रष्ट कर डालते हैं। अच्छा हो, हम अपनी पांच-पाँच सौ गाड़ियों के साथ दो पृथक्-पृथक भागों में बँट जाएं। ऐसा सोचकर वे दो भागों में बँट गये। "व्यापारियों-बनजारों का एक मुखिया बहुत-सा घास, काष्ठ तथा पानी आदि अपेक्षित सामग्री साथ लिए एक तरफ रवाना हो गया। दो-तीन दिन चलता रहा । उसके बाद उसने एक कर्दम-लिप्त चक्कों वाले, सुन्दर रथ पर आरूढ़ एक पुरुष को सामने से आते हुए देखा । वह काले वर्ण का था। उसकी लाल-लाल आँखें थीं, धनुष-बाण लिये था, कुमुदग्रथित माला पहने था। उसके कपड़े भीगे थे, बाल भी भीगे थे। बनजारों के मुखिया ने उससे पूछा-'महोदय ! आप कहाँ से आ रहे हैं ?' वह पुरुष बोला-'अमुक जनपद से।' 'आप कहाँ जायेंगे?' 'अमुक जनपद को जाऊंगा।' 'क्या उस वन में, जिसे आप पीछे छोड़ आये हैं, भारी वर्षा हुई है ?' "हां उस वन में भारी वर्षा हुई है । रास्ते जल से भर गये हैं । स्थान-स्थान पर बहुत घास काष्ठ और पानी है। आप अपने पुराने घास, काष्ठ और पानी का भार अब आगे क्यों ढो रहे हैं ? अच्छा होगा, इसे यहीं डाल दें। इससे आपकी गाड़ियाँ कुछ हलकी हो जायेंगी। बैलों को निरर्थक कष्ट नहीं होगा। ऐसा कर आप आगे जाएं। आगे सब वस्तुएँ प्राप्त यह सुनकर बनजारों का मुखिया अपने साथियों से बोला- “यह पुरुष जो कह रहा है, ठीक है। हम अपना पुराना घास आदि यहीं डाल दें। गाड़ियों को हल्का कर आगे बढ़े।" "बनजारों को अपने मुखिया का सुझाव अच्छा लगा। उन्होंने अपना घास आदि वहीं छोड़ दिया। वे आगे बढ़े। पहले पड़ाव पर पहुंचे। तृण, काष्ठ एवं पानी नहीं मिला । दूसरे पड़ाव पर पहुँचे, वही स्थिति रही। क्रमशः तीसरे, चौथे, पांचवें, छठे और सातवें पड़ाव पर पहुँचे, किन्तु, तृण आदि नहीं प्राप्त हुए। सभी बड़े संकट में पड़ गये। वह पुरुष, जिसने ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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