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श्रागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : ३
विष मिलाया, राजा के पहनने के वस्त्रों में सूंघने योग्य सुरभित पदार्थों में पुष्प मालाओं में तथा गहनों में विष डाला, छिड़का, उन्हें विषाक्त बनाया । राजा जब स्नान आदि करके आया तब उसे वह विषैला भोजन परोसा, विषमय कपड़े पहनाये तथा विषाक्त आभूषण धारण करवाये । विष का तत्काल प्रभाव हुआ । राजा के असह्य वेदना उत्पन्न हुई । उसके शरीर में भयानक पित्त ज्वर हो गया । सारा शरीर बुरी तरह जलने लगा ।
राजा प्रदेशी को रानी सूर्यकान्ता का षड्यन्त्र यद्यपि ज्ञात हो गया, पर, उसने उसके प्रति अपने मन में जरा भी द्वेष नहीं किया, किंचित् मात्र क्रोध नहीं किया । वह समाधि-मृत्यु प्राप्त करने हेतु पौषध - शाला में आया । अर्हत् सिद्ध एवं आचार्य को नमन किया, वन्दन किया, अठारह पाप-स्थानों का मन, वचन तथा काय-योग- पूर्वक प्रत्याख्यान किया, जीवन भर के लिए चतुर्विध प्रहार का परित्याग किया शरीर का भी भावात्मक दृष्टि से परित्याग किया । आलोचना तथा प्रतिक्रमण कर राजा प्रदेशी ने समाधि-मरण प्राप्त किया । वह सौधर्म कल्प के सूर्याभविमान की उपपात -सभा में सूर्याभ देव के रूप में जन्मा ।
गौतम ने भगवन् महावीर से पूछा - " सूर्याभ देव अपना देव आयुष्य पूर्ण कर स्वर्ग से कहाँ जायेगा ? कहाँ जन्म लेगा ? "
पुत्र
भगवान् बोले - "गौतम ! वह मसाविदेह क्षेत्र के प्रसिद्ध कुलों में से सिसी एक कुल के रूप में जन्म लेगा । वे कुल प्रत्यन्त धन-धान्य - सम्पन्न हैं, दीप्तिमय हैं, प्रभावशाली हैं । उनके कुटुम्ब, परिवार विशाल हैं । भवन, धन, रत्न, स्वर्ण, रजत आदि विविध प्रकार की विपुल संपत्ति के वे अधिपति हैं । ऐसे व्यापार में लगे हैं, जिससे प्रचुर धन का उपार्जन होता है, । सुख-सुविधा के लिए उनके यहाँ दास, दासियाँ, गायें, भैंसें, भेड़े आदि पशु धन हैं । दीन-जनों के प्रति उनमें दया भाव है । उन्हें देने के लिए उनके यहाँ प्रचुर मात्रा में भोजन तैयार होता है, । वहाँ सूर्याभदेव ज्यों ही गर्भ में आयेगा उसके माता-पिता के मन में धार्मिक श्रद्धा दृढ़ होगी । वे उसका नाम दृढ़-प्रतिज्ञ रखेंगे । दृढ़-प्रतिज्ञ का बड़े ठाट-बाट और शाही ढंग से लालन-पालन होगा। आठ वर्ष की आयु हो जाने पर उसके माता-पिता उसे विद्याध्ययन तथा कला - शिक्षण हेतु कलाचर्य के पास ले जायेंगे । कलाचार्य बालक को बहत्तर कलाओं की शिक्षा देंगे, अभ्यास करा देंगे, सिद्ध करा देंगे, सुयोग्य बनाकर माता पिता को सौंप देंगे ।
"माता-पिता कलाचार्य का सत्कार-सम्मान करेंगे । उनकी आजीविका - वर्तमान तथा भावी जीवन- निवहि की व्यवस्था हेतु पर्याप्त प्रीतिदान देंगे ।
" दृढ़-प्रतिज्ञ जब युवा होगा, माता-पिता संसारिक सुख भोग की प्रोर उसे प्राकृष्ट करना चाहेंगे । पर वह सांसारिक सुखों में प्रासक्त. अनुरक्त, मूच्छित तथा लोलुप नहीं होगा । वह कमल की ज्यों निर्लेप रहेगा । वह स्थविरों से सम्यक्त्व लाभ करेगा, श्रमण-धर्म में प्रव्रजित होगा, संयम का यथावत् रूप में पालन करेगा, अपने तपःपूत जीवन द्वारा उद्योतित एवं दीप्तिमान् होगा । वह केवल ज्ञान, केवल दर्शन प्राप्त करेगा; अर्हत् जिन केवली होगा । अनेक वर्ष पर्यन्त केवलि - पर्याय का परिपालन कर सिद्ध होगा; मुक्त होगा, समग्र कर्मों का क्षय करेगा; समग्र दुःखों का अन्त करेगा ।""
१. राजप्रश्नीय सूत्र के आधार पर
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