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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : ३ प्रदेशी - "भगवन् ! आप जो कह रहे हैं, वह सर्वथा उचित है । मेरी प्रान्तरिक भावना यह थी, मेरी ओर से आपके प्रति जो प्रतिकूल, अनुचित व्यवहार हुआ है, उसके लिए मैं कल प्रात: अपने अन्तःपुर एवं परिवार सहित क्षमा-याचना हेतु, वन्दन- नमन हेतु आपकी सेवा में उपस्थित होऊं । मैं यथाविधि, सभक्ति, सादर क्षमा-याचना कर सकूँ, इसके लिए पुन: कल प्रातः आपकी सेवा में आने का संकल्प लिए प्रस्थानोद्यत हुआ ।” यों निवेदित कर राजा प्रदेशी अपनी नगरी में लौट आया । १८४ दूसरे दिन प्रातःकाल राजा प्रदेशी सूर्यकान्ता आदि रानियों, पारिवारिक जनों और विशाल परिषद् के साथ केशीकुमार श्रमण की सेवा में उपस्थित हुआ, उन्हें वन्दन- नमन किया, अत्यन्त विनम्र भाव से अपने प्रतिकूल आचरण के लिए मुनिवर से यथाविधि क्षमा-याचना की । केशीकुमार श्रमण ने प्रदेशी राजा, सूर्यकान्ता आदि रानियों, सभी परिजनों तथा विशाल जन समूह को धर्मोपदेश दिया । राजा ने धर्मोपदेश सुना, हृदयंगम किया । अपने आसन से उठकर केशीकुमार श्रमण को वन्दन - नमन किया। वन्दन नमन कर वह सेयविया नगरी की ओर गमनोद्यत हुआ । जब राजा प्रदेशी इस प्रकार जाने को तत्पर था, तब केशीकुमार श्रमण ने उसे जागरूक करते हुए कहा - "राजन् ! वन-खण्ड, नाट्यशाला, इक्षुवाट - गन्ने का उद्यान या खेत तथा खलवाट - खलिहान पहले तो बड़े रमणीय-सुन्दर या मनोज्ञ होते हैं, पर बाद में वे श्ररमणीय - सुन्दर तथा अमनोज्ञ, अप्रिय हो जाते हैं । उसी प्रकार तुम पहले रमणीय - धर्भ की आलोचना में निरत रहते हुए सुन्दर होकर फिर रमणीय - धर्म की अराधना से विरहित मत हो जाना ।" प्रदेशी - "भगवन् ! वन -खण्ड आदि के रमणीय, रमणीय होने का क्या अभिप्राय है, कृपा कर समझाएं ।" केशीकुमार श्रमण - "वन खण्ड जब तक वृक्षों, बेलों, पत्तों, पुष्पों तथा फलों से सम्पन्न, शीतल, सघन छाया से युक्त होता है, तब तक वह बड़ा ही सुहावना और मोहक प्रतीत होता है पर जब पतझड़ में उसके पेड़, पत्ते, पुष्प, फल आदि झड़ जाते हैं सूख जाते हैं, तब वह वन खण्ड बड़ा भयानक, कुरूप और अशोमनीय लगता है । "जब तक नाट्य-शाला में वाद्य बजते हैं, नृत्य होते हैं, संगीत होता है, नाटक होते हैं, वह लोगों के हास-परिहास से, मनोरंजन से, क्रीड़ाओं से बहुत भव्य और शोभनीय प्रतित होती है, पर जब नाट्य-शाला में ये सब बंद हो जाते हैं, तब वह असुहावनी और असुन्दर लगने लगती है ।” " गन्नों के खेत में जब गन्ने काटे जाते हैं, कोल्हू में पेरे जाते हैं तो वहां अनेक लोग आते हैं, गन्नों का मधुर रस पीते हैं, परस्पर लेते हैं, देते हैं । तब वह गन्नों का खेत बड़ा मोहक और रमणीय प्रतीत होता है, किन्तु जब उसी गन्नों के खेत में गन्ने कट जाते हैं, पेरना बन्द हो जाता है, तो वह सूना हो जाता है, लोगों का आवागमन रुक जाता है, वह बड़ा असुन्दर और रमणीय दीखने लगता है । "जब खलिहानों में कटी हुई फसल एकत्र होती है, धान के ढेर लगे रहते हैं, धान निकाला जाता है, तिल आदि पेरे जाते हैं, तब अनेक लोग वहाँ एकत्र रहते हैं, एक साथ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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