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१८० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड :३ केशीकुमार श्रमण ने प्रदेशी राजा को कहा-"प्रदेशी ! जानते हो, व्यवहार कितने प्रकार के बताए गये हैं ?"
प्रदेशी बोला—"भगवन् ! जानता हूं, वे चार प्रकार के हैं—एक वह है, जो किसी को दान देता है, किन्तु, उसके साथ प्रीतियुक्त वाणी नहीं बोलता। दूसरा वह है जो प्रीतिजनक वाणी तो बोलता है, परन्तु, कुछ देता नहीं है। तीसरा वह है, जो मधुर वाणी भी बोलता है और देता भी है तथा चौथा वह है, जो न कुछ देता है और न मधुर वाणी ही बोलता है।"
केशीकुमार श्रमण बोला-"जानते हो, इन चार प्रकार के मनुष्यों में कौन व्यहारकुशल और कौन व्यहार-शून्य है ?"
प्रदेशी बोला-"हाँ भगवन् ! मैं जानता हूँ, इनमें जो मनुष्य देता है, मधुर भाषण नहीं करता, वह अव्यवहारी है। जो मनुष्य देता नहीं, किन्तु, मधुर, सन्तोषजनक वार्तालाप करता है, वह व्यवहारी है । जो मनुष्य देता भी है और प्रीतियुक्त वचन भी बोलता है, वह व्यवहारी है, किन्तु, जो न देता है और न प्रीतियुक्त वचन ही बोलता है, वह अव्यवहारी है।"
केशीकुमार श्रमण बोले-“प्रदेशी ! तुम भी व्यवहारी हो, अव्यवहारी नहीं हो।"
तब प्रदेशी राजा ने केशीकुमार श्रमण से कहा-"पाप विद्वान् हैं, निपुण हैं उपदेशप्राप्त हैं, मुझे हथेली पर रखे आँवले की तरह जीव को बाहर निकाल कर दिखा सकते हैं ?"
प्रदेशी ने इतना कहा ही था कि उसी समय हवा चलने से राजा के आस-पास तण, घास, पौधे आदि हिलने-डुलने लगे, स्पन्दित होने लगे, आपस में टकराने लगे, विविध अवस्थाओं में परिणत होने लगे।
तब केशीकुमार श्रमण ने प्रदेशी राजा से कहा-"क्या तुम इन तृण आदि वनस्पतियों को हिलते-डुलते देखते हो?"
प्रदेशी ने कहा-"हाँ, मैं देखता हूँ।"
केशीकुमार श्रमण बोले-"क्या तुम यह भी जानते हो कि इन तृण आदि वनस्पतियों को कोई देवता परिचालित कर रहा है या कोई असुर या राक्षस हिला रहा है, कोई नाग, किन्नर, कि पुरुष, महोरग या गन्धर्व परिचालित कर रहा है ?"
___प्रदेशी ने कहा-"न इन्हें देव हिला रहा है, न गन्धर्व हिला रहा है, न और कोई हिला रहा है । ये वायु द्वारा परिचालित हैं।"
केशी कुमार श्रमण बोले-"क्या मूर्त काम, राग, मोह, वेद, लेश्या और शरीरयुक्त वायु का रूप तुम देखते हो?"
प्रदेशी बोला-"मैं नहीं देखता।"
केशीकुमार श्रमण कहने लगे-"राजन् ! रूप-युक्त, शरीर-युक्त वायु का रूप तुम नहीं देख पाते तो अमूर्त, रूप-रहित जीव को हाथ में रखे आंवले की तरह मैं कैसे दिखला सकता हूँ। प्रदेशी ! असर्वज्ञ पुरुष इन दश स्थानों को-वस्तुओं को सर्वभाव पूर्वकसर्व पर्यायों के साथ न जान सकते हैं और न देख सकते हैं-१. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. अशरीर बद्ध-शरीर रहित जीव, ५. परमाणु पुद्गल,
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