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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ है । एक पुरुष युवा है, सुपुष्ट, सुदृढ़, सुगठित शरीर युक्त है, कार्य-दक्ष है। क्या वह एक साथ पांच बारण निकालने में समर्थ है ?" केशीकुमार श्रमण ने कहा-"हाँ वह समर्थ है।" प्रदेशी राजा बोला-"वही पुरुष यदि अज्ञ और मंद विज्ञान तथा अकुशल हो और यदि वह एक साथ पाँच बाणों को निकालने में समर्थ हो तो मैं यह मान सकता हूं कि जीव और शरीर भिन्न-भिन्न हैं। क्योंकि ऐसा नहीं होता इसलिए भगवन्! मेरी यह मान्यता है, धारणा है - जीव और शरीर एक है।" केशीकुमार श्रमण मे कहा - "कोई तरुण, कार्य-निपुण पुरुष नवोन धनुष, नवीन प्रत्यञ्चा तथा नवीन बारण से क्या एक साथ पाँच बाण निकालने में समर्थ है ?" प्रदेशी बोला-"हाँ, समर्थ है।" केशीकुमार श्रमण ने कहा - "वही तरुण तथा कार्य कुशल पुरुष यदि धनुष, प्रत्यञ्चा तथा बाण जीर्ण-शीर्ण हों तो क्या एक साथ पाँच बाण छोड़ने में समर्थ है ?" प्रदेशी ने कहा - "वह समर्थ नहीं है।" केशीकुमार श्रमण ने पूछा - "क्यों समर्थ नहीं है ?" प्रदेशी बोला - "उसके पास उपकरण या साधन पर्याप्त नहीं हैं।" केशीकुमार श्रमण ने कहा - "इसी प्रकार अज्ञ, मन्दज्ञानी, अकुशल पुरुष योग्यता रूप साधन के यथेष्ट न होने के कारण एक साथ पाँच बाण छोड़ने में समर्थ नहीं हो पाता। इसलिए तुम यह विश्वास करो कि जीव और शरीर अलग-अलग है, एक नहीं है।" ___यह सुनकर प्रदेशी राजा ने केशीकुमार श्रमण से कहा - "भगवन् यह बौद्धिक युक्ति मात्र है, मुझे नहीं जचती । बतलाइए, कोई तरुण, कार्य-निपुण पुरुष वजनी लोहे को, शीशे को या रांगे को उठा सकता है या नहीं ?" केशीकुमार बोला – “उठा सकता है।" प्रदेशी ने कहा--"भगवन् ! वही पुरुष जब बूढ़ा हो जाए, बुढ़ापे से शरीर जर्जर हो जाए, शिथिल हो जाए, चलते समय हाथ में लाठी रखनी पड़े, दांतों की पंक्ति में से जिसके बहुत से दांत गिर जाएँ, जो रोग-ग्रस्त हो जाए, दुर्बल हो जाए, प्यास से व्याकुल हो, क्षीण हो, क्लान्त हो, उस वजनी लोहे को, शीशे को, रांगे को उठाने में समर्थ नहीं हो पाता । वह पुरुष वृद्ध, जराजीर्ण और परिक्लान्त होने पर भी यदि उस वजनी लोहे को उठाने में समर्थ होता तो मैं यह विश्वास करता कि जीव शरीर से भिन्न है और शरीर जीव से भिन्न है, दोनों एक नहीं हैं। भगवन्! वह पुरुष वृद्ध क्लान्त हो जाने के कारण भारी लोहे को उठाने में समर्थ नहीं होता, इसलिए मेरी जीव और शरीर के एक होने की मान्यता ठीक है।" केशीकुमार श्रमण ने प्रदेशी राजा से कहा-- "जैसे कोई तरुण, कार्य-दक्ष पुरुष नवीन कावड़ से, नवीन रस्सी से बने नवीन छींके से तथा नवीन टोकरे से एक बहुत बड़े वजनी लोहे को उठा सकता है या नहीं ?" प्रदेशी बोला--"उठा सकता है।" केशीकुमार श्रमण ने कहा--"वही तरुण पुरुष क्या जीर्ण-शीर्ण, पुरानी, कमजोर, घुनों खाई हुई काबड़ से जीर्ण-शीर्ण, दुर्बल एवं घुनों द्वारा खाये हुए छीके से तथा पुराने, ____Jain Education International 201005 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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