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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-राजा प्रदेशी : पायासी राजन्य
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है? परीत संसारी-परिमित काल तक संसार में -जन्म-मरण के चक्र में रहने वाला हूँ अथवा अनन्त संसारी-अनन्त काल तक संसार में भ्रमण करने वाला हूँ ? सुलभ-बोधिसरलता से सम्यक् ज्ञान-दर्शन की प्राप्ति करने वाला हूँ अथवा दुर्लभ-बोधि-कठिनता से सम्यक, ज्ञान-दर्शन की प्राप्ति करने वाला हूँ ? अाराधक-बोधि-लभ्य धर्म की आराधन करने वाला हूँ अथवा विराधक-विराधना करने वाला हूँ ? चरम-शरीरी हूँ अथवा अचरम-शरीरी
भगवान् महावीर ने सूर्याभ देव को उत्तर दिया- 'सूर्याभ देव ! तुम भव सिद्धिकभव्य हो, अभवसिद्धिकः--अभव्य नहीं हो, सम्यक-दृष्टि हो, मिथ्या-दृष्टि नहीं हो, परीतसंसारी हो, अनन्त-संसारी नहीं हो, सुलभ-बोधि हो, दुर्लभ-बोधि नहीं हो–आराधक हो, विराधक नहीं हो, चरम-शरीरी हो, अचरम-शरीरी नहीं हो।"
सूर्याभदेव : दिव्य नाट्य-विधि
सूर्याभ देव ने वन्दन-नमन कर भगवान् से निवेदन किया- "भगवन् ! मैं चाहता हूँ, आपकी भक्ति के कारण गौतम आदि के समक्ष अपनी देव-ऋद्धि देव-द्युति, दिव्य देव प्रयाव तथा बत्तीस प्रकार की दिव्य नाट्य विधि-नाटक-कला का प्रदर्शन करूं।"
सूर्याभ देव के इस प्रकार निवेदन करने पर श्रमण भगवान् महावीर ने उस कथन का न तो आदर और न अनुमोदन ही किया। भगवान् मौन रहे।
तब सूर्याभ देव ने दूसरी बार पुन : इसी प्रकार श्रमण भगवान् महावीर से निवेदन किया।
सूर्याभ देव भगवान् की ओर मुख करके अपने उत्तम सिंहासन पर बैठ गया। उसने अपनी दाहिनी भुजा को फैलाया। उससे समानवय, समान लावण्ययुक्त १०८ देवकुमार निकले । बाइँ भुजा से १०८ परम रूपवती, समानवय, समान लावण्ययुक्त देवकुमारियाँ निकलीं। फिर सूर्याभ देव ने १०८-१०८ विभिन्न प्रकार के वाद्यों तथा वादकों की विकुर्वणा की। तत्पश्चात् सूर्याभ देव ने देवकुमारों और देवकुमारियों को आज्ञा दी कि तुम गौतम आदि के समक्ष ३२ प्रकार की नाट्य-विधि दिखलाओ। देवकुमार और देवकुमरियों ने वैसा ही किया। उन्होंने अनेक प्रकार की नाट्य-कलाओं का प्रदर्शन कर भगवान् महावीर के पूर्व-भव और चरित्र से सम्बद्ध तथा वर्तमान जीवन से सम्बन्ध नाट्यअभिनय किये।
उन सभी देवकुमारों और देवकुमारियों ने विभिन्न प्रकार के बाजे बजाये, पुन : नाटक का अभिनय किया।
___ भगावन् महावीर को यथा-विधि वन्दन-नमन कर वे अपने स्वामी सूर्याभ देव के पास आये, प्रणाम किया और कहा कि प्रभो ! आपकी आज्ञा हमने पूरी कर दी है।
तदनन्तर सूर्याभ देव की सामानिक परिषद् के सदस्यों ने अपने पाभियोगिक देवों को बुलाया और उनसे कहा कि तुम लोग शीघ्र ही सूर्याभदेव का अभिषेक करने हेतु विपुल सामग्री उपस्थित करो। उन आभियोगिक देवों ने सामानिक देवों की इस प्राज्ञा को सहर्ष स्वीकार किया। महोत्सव हुआ। किसी देव ने चाँदी की वर्षा कराई, किसी ने सोने की, किसी
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