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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
में स्थित अपने स्वामी सूर्याभ देव के पास आए। दोनों हाथ जोड़कर उसको प्रणाम किया और कहा कि आपकी आज्ञा के अनुसार कार्य कर दिया गया। सूर्याभ देव यह सुनकर प्रसन्न हुआ।
वर्शन : वन्दन
- इसके बाद सूर्याभ देव ने अपने पदाति-अनीकाधिपति-स्थल सेनापति देव को बुलाया और आज्ञा दी कि तुम सूर्याभ विमान में सुधर्मा सभा में स्थित मेघ-समूह जैसा गंभीर मधुर शब्द करने वाली एक योजन-प्रमाण गोलाकार सुस्व घंटा को तीन बार बजा-बजाकर मेरी ओर से यह घोषणा करो-सूर्याभ विमान में रहने वाले देवो ! और देवियों ! सूर्याभ देव की आज्ञा है कि जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजित हैं, आप सब अपनी समस्त ऋषि, कान्ति, बल-सेना तथा अपने-अपने अाभियोगिक देवों के समुदाय सहित गाजे-बाजे के साथ अपने विमानों में बैठकर अविलम्ब उनके समक्ष उपस्थित हो जाएं।
अपने स्वामी की आज्ञा सुनकर उस देव ने वैसा ही किया। अनवरत विषय-सुख में मुच्छित देवों और देवियों ने उस घोषणा को सुना। उसे सुनकर वे अत्यन्त प्रसन्न हुए
और सुर्याभ देव के समक्ष यथावत् रुप में उपथित हो गये। सुर्याभ देव उन्हें अपने समक्ष उस्थित देखकर बहत हर्षित हुआ और उसने अपने अभियोगिक देवों को बुलाया, उनको याज्ञा दी कि तम शीघ्र ही अनेक सैकडों खम्भों पर टिके हए एक विमान की रचना करो, जो अत्यन्त सुन्दर रूप में सजा हया, चित्रांकित और देदीप्यमान हो, जिसे देखते ही दर्शकों के नेत्र आकृष्ट हो जाएँ। अभियोगिक देवों ने विमान की रचना में प्रश्त्त होकर पूर्व, दक्षिण और उत्तर-इन तीन दिशाओं में विशिष्ट रूप, शोभा सम्पन्न तीन-तीन सोपानों वाली सोपान पंक्तियों की रचना की। इन सोपान पंक्तियों के आगे मणियों से बने हुए तोरण बंधे थे। तोरणों पर नीली, लाल, पीली और सफेद चामर ध्वजाएं थीं। इन तोरणों के शिरोभाग में अत्यन्त शोभनीय रत्नों से बने हए छत्र, अतिछत्र, पताका, अतिपतिका प्रादि द्वारा सजावट की गई थी। फिर अभियोगिक देवों ने विमान के भीतर की रचना की। उसे बहुत ही सुन्दर रूप में बनाया। उसके बीच एक क्रीड़ा-मंच बनाया । उस क्रीड़ा-मंच के ठिक बीच में पाठ योजन लंबी-चौड़ी और चार योजन मोटी, पूरी तरह वज्र रत्नों से बनी हुई एक मारिण-पीठिका बनाई । उस मणि-पीटिका के ऊपर एक महान सिंहासन बनाया जो अनेक चित्रों से अंकित था। सिंहासन के आगे मरिणयों और रत्नों का पीठ बनाया। उस पर कोमल वस्त्र बिछाया । सूर्याभ देव के सभी पारिवरिक जनों के आसन लगाये। सब देव वहाँ पहुचे। उनके पीछे सूर्याभ देव अपनी चार पटरानियों, सोलह हजार प्रात्मरक्षक देवों तथा दूसरे बहुत से सूर्याभ विमान वासी देवों और देवियों के साथ ऋद्धि, वैभव एवं वाद्य-निनाद सहित चलता हुआ श्रमण भगवान् महावीर के पास आया। भगवान् को वन्दन किया। भगवान् की सेवा में यथास्थान बैठा
भगवान् महावीर ने सूर्याभ देव को और उपस्थित विशाल परिषद् को धर्म-देशना दी। परिषद् सुनकर चली गई । सूर्याभ देव ने भगवान् से पूछा--"भगवन् । मैं सूर्याभ देव क्या भव सिद्धिक-भव्य हूं अथवा अभव सिद्धिक-अभव्य हूं ? सम्यग्दृष्टि हूँ या मिथ्यादृष्टि
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