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आगम और त्रिपिटक : एक आनुशीलन
खिण्ड:३
[खण्ड : ३
२. राजा प्रदेशी : पायासी राजन्य
परलोकवादी, पुनर्जन्मवादी दर्शनों में लोक, परलोक जीव, सत् असत्-पुण्य-पापात्मक कर्म, उनका शुभाशुभ फल, पुनर्जन्म, स्वर्ग, नरक इत्यादि विषय तात्त्विक चिन्तन के प्रमुख पक्ष रहे हैं । इन पर अनेक प्रकार से ऊहापोह होता रहा है, अाज भी होता है । जैन-प्रागमों एवं बौद्धपिटकों में ये विषय विस्तार से चर्चित हैं ।
जैन-धर्म एवं बोद्ध-धर्म सदा से लोकपरक रहे हैं। उनका जन-जन से सीधा सम्बन्ध रहा है। इसलिए जन-साधारण को धर्म-तत्त्व आत्मसात् कराने की दृष्टि से वहाँ घटना-क्रमों, कथानकों या आख्यानों का माध्यम विशेष रूप से प्रयुक्त हुआ है। रायपसेरिणय सुत्त (जैन) तथा पायासिराजञ सुत्त (बौध-दीघनिकाय) ऐसी ही कृतियाँ हैं, जिनमें दो कथानकों द्वारा उपर्युक्त तत्त्वों का प्रश्नोत्तर-रूप में बड़ा सुन्दर समाधान उपस्थित किया गया है।
रायपसेणिय सुत्त में सेयविया नरेश प्रदेशी एक ऐसे पुरुष के रूप में उपस्थापित हैं, जिसे लोक, परलोक, जीव, पुनर्जन्म, पुण्य, पाप आदि में विश्वास नहीं है। वह श्रमण केशी कमार के सम्पर्क में आता है। इन विषयों पर विस्तृत प्रश्नोत्तर क्रम चलता है। अन्ततः प्रदेशी समाहित हो जाता है, धर्मिष्ठ बनी जाता है।
पायासी राजा सुत्त में नामान्तर मात्र है। घटना का तात्त्विक पक्ष काफी सादृश्य लिए हैं। श्वेताम्बी-नरेश पायासी की भी लगभग प्रदेशी जैसी ही मान्यताएँ थीं। लम्बे प्रश्नोत्तरों के बाद वह श्रमण कुमार काश्यप से समाधान पाता है। उसका जीवन बदल जाता है । वह दान, शील आदि कुशल कर्मों में लग जाता है।
जैन पाख्यान का प्रस्तुतीकरण जहाँ सूर्याभ नामक देव के पूर्व-भव वर्णन के रूप में है, वहाँ बौद्ध पाख्यान सीधा विषय से संलग्न है, किन्तु, दोनों की चिन्तन-सरणि बड़ी समकक्षता लिए हैं।
राजा प्रदेशी
मामलकल्पा
आमलकल्पा नामक नगरी थी । नगर के बाहर उत्तरपूर्व दिशा भाग में आम्रशाल वन नामक चैत्य था। वह बहुत प्राचीन था। लोग उसकी पूजा करते थे । आमलकल्पा नगरी के राजा का नाम सेय था। वह विशुद्ध कुल तथा उत्तम वंश में उत्पन्न हुआ था। उसकी पटरानी का नाम धारिणी था। वह रूप-गुण-सम्पन्न थी।
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