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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-मातंग हरिकेश बल : मातंग जातक १६३ बनवाएँ, अन्यथा बड़ा अहित होगा।" राजा उनकी बातों में आ गया। उसने ऐसा करना स्वीकार कर लिया । बोधिसत्त्व ने भिक्षा द्वारा बहुविमिश्रित भोजन प्राप्त किया। वे एक दीवार का सहारा लेकर चबूतरे पर बैठे, खाना खाने लगे। भोजन करते समय उनका ध्यान किसी दूसरी ओर था। मेद राष्ट्र के राजा के कर्मचारी उधर पाए, तलवार द्वारा बोधिसत्व की हत्या कर दी । बोधिसत्त्व मरकर ब्रह्मलोक में उत्पन्न हुए। इस घटना से देवता बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने समग्र मेद राष्ट्र पर गर्म गारे की वृष्टि की। राष्ट्र को अराष्ट्र में परिवर्तित कर दिया। यशस्वी मातंग के निहत हो जाने के कारण उस समय मेद राज्य तथा उसकी समग्र परिषद् ध्वस्तप्राय हो गई।१ यक्त रूप में धर्म-देशना देकर कहा कि न केवल प्रब ही वरन पूर्व समय में भी उदयन ने प्रवजितों को दुःख ही दिया है । भगवान् ने बताया-"तब उदयन मंडव्य था और मातंग पंडित तो मैं ही स्वयं था।" १. उपहञ्जमाने मेज्झा, मातङ्गस्मिं यसस्सिने । सपारिसज्जो उच्छिन्नो, मेञ्झरनं तदा अहु ॥२४॥ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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