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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
ब्राह्मण कहने लगा-"दुष्ट चांडाल ! तेरा बुरा हो । अब यहाँ निवास मत कर। नदी की धारा के नीचे की ओर चला जा, वहीं रह ।"
चांडाल के रूप में विद्यमान बोधिसत्त्व नीचे की ओर जाकर रहने लगे। वहाँ पर भी वे ब्राह्मण की जटाओं में जा लगने के संकल्प से नदी की धारा में दातुन गिराते । दातुन नीचे से ऊपर की ओर बहती जाती तथा ब्राह्मण की जटाओं में जाकर लग जाती । ब्राह्मण बड़ा क्षुब्ध होती । एक दिन वह बोधिसत्त्व को शाप देता हुआ बोला--- "यदि तुम यहाँ रहोगे तो आज से सातवें दिन मस्तक के सात टुकड़े हो जाएँगे।"
बोधिसत्त्व ने विचार किया, इस ब्राह्मण द्वारा किए गए क्रोध का प्रतिकार क्रोध से करूंगा तो मेरा शील खंडित हो जाएगा। मुझे समुचित उपाय करना होगा । सातवाँ दिन आने को था। बोधिसत्त्व ने सूरज का उगना रोक दिया। सूरज न उगने से लोग बड़े दुःखित हुए। उनके सारे काम ठप्प हो गए। वे क्रोधित होकर जातिमंत तपस्वी के पास आए। उन्होंने उससे कहा-"भन्ते ! सूरज को क्यों नहीं उगने देते ?"
ब्राह्मण बोला- "इस बात का मुझसे कोई सम्बन्ध नहीं है । नदी के तट पर एक चांडाल निवास करता है । संभव है, यह उसका काम हो।" वे मनुष्य बोधिसत्त्व के पास पाए और उनसे पूछा -'"भन्ते ! सूरज को क्यों नहीं उगने देते ?"
बोधिसत्त्व ने कहा-"हाँ ! मैं सूर्योदय नहीं होने देता।" लोगों ने पूछा--"भन्ते ! ऐसा क्यों है ?"
बोधिसत्त्व बोले-'मेरा कोई अपराध नहीं है, फिर भी यहाँ रह रहे जातिमन्त तपस्वी ने मुझे शाप दिया है । वह तपस्वी कुल-परंपरा या तुम लोगों से सम्बद्ध है। यदि वह मेरे चरणों में गिरकर अपनी भूल के लिए क्षमा माँगे तो मैं सूर्य को मुक्त कर सकता हूँ। लोग उसे ढूंढने गए। उसे खींचकर लाए, बोधिसत्त्व के चरणों में गिराया, क्षमायाचना करवाई, प्रार्थना करवाई--"भन्ते ! अब सूरज को मुक्त कर दीजिए।"
__ बोधिसत्त्व ने कहा-"सूरज को नहीं छोड़ सकता । यदि मैं छोड़ दूंगा तो शाप उल्टा होगा। इस ब्राह्मण के मस्तक के सात टुकड़े हो जाएँगे।"
लोग बोले--"तब हम क्या करें ?"
बोधिसत्त्व ने उनसे मिट्टी का एक ढेला मँगवाया। उसे तपस्वी जातिमंत के मस्तक पर रखवाया । तपस्वी को पानी में उतरवाया। उन्होंने सूरज को छोड़ा । सूरज की किरणों के छूते ही मिट्टी के ढेले के सात टुकड़े हो गए। जैसा उसे बताया गया था, जातिमंत ने जल में डुबकी लगाई। फिर बाहर निकला । इस प्रकार बोधिसत्त्व ने उसका अहंकार विगलित किया।
फिर बोधिसत्त्व ने उन सोलह हजार ब्राह्मणों का पता लगाना चाहा, जिनको उन द्वारा उच्छिष्ट कांजी के जल के छींटे देकर कष्ट-मुक्त किया गया था। उन्हें विदित हुआ कि वे मेद राष्ट्र में रहते हैं। उनके मद-दलन हेतु अपने ऋद्धि-बल द्वारा वे अाकाश-मार्ग से वहाँ पहुँचे। नगर के समीप उतरे। हाथ में भिक्षा-पात्र लिया और नगर में भि निकले। ब्राह्मण घबराए । वे सोचने लगे--यदि यह भिक्षु एक आध दिन भी यहाँ रह गया तो हमारी सारी प्रतिष्ठा समाप्त हो जाएगी। वे जल्दी-जल्दी राजा के पास गए। बात को अपना रंग देते हुए राजा से निवेदन किया-“एक मायावी जादूगर यहाँ आया है, उसे बन्दी
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