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पागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
वहाँ जो लोग खड थे, उन्होंने कहा-"यहाँ एक. श्रमण आया था, जो घर पर से उठाये हुए से चिथड़े, गन्दे मैले वस्त्र पहने था। वैसे ही गन्दे वस्त्र उसके गले से बंध थे, लटकते थे। वह धूल-धूसरित पिशाच जैसा लगता था। उसी ने तुम्हारे पुत्र की यह दशा की है।" .
- बिटु मंगलिका द्वारा अनुगमन : अनुनय
दिट्ठ मंगलिका ने जब यह सुना तो उसे ऐसा लगा-और किसी में ऐसी शक्ति नहीं है, निश्चय ही मातंग पंडित के कारण यह हुआ है, किन्तु, वह धीर पुरुष है, मंत्रीभावना से परिपूर्ण है । वह इतने मनुष्यों को कष्ट में डालकर नहीं जा सकता।
इस सम्बन्थ में पूछते हुए वह बोली-"लोगो ! मुझे बतलायो, वह भूरिप्रशविशिष्ट प्रज्ञाशील महापुरुष किस दिशा की ओर गया है ? उसके पास जाकर हम अपने अपराध का प्रतिकार करें-क्षमा मांगें, प्रायश्चित करें। मेरे पुत्र को इससे नया जीवन प्राप्न होगा। ऐसी मुझे मान्य है ।"२
लोगों ने कहा-"वह भूरिप्रज्ञ, सत्य-प्रतिज्ञ, साधुचेता ऋषि पूर्णिमा के चन्द्र की ज्यों माकाश-मार्ग द्वारा पूर्व की ओर गया है।"
दिट्ठ मंगलिका ने यह सुना। उसने अपने स्वमी की खोज करने का संकल्प किया। उसने अपने हाथ में एक स्वर्ण का कलश तथा स्वर्ण का प्याला लिया, वह अपनी परिचारिकाओं के साथ चली। बोधिसत्त्व ने जहाँ अपने पद-चिह्नों के दृष्टिगोचर न होने का संकल्प किया, वह अनुमान के सहारे वहाँ तक गई। तत्पश्चात् वह पदचिह्नों का अनुसरस करती हुई उस स्थान तक पहुँच मई, जहाँ बोधिसत्त्व पीढ़े पर बैठे आहार कर रहे थे। उसने उनको प्रणाम किया और वह एक तरफ खड़ी हो गई। बोधिसत्त्व ने उसे देखा। वे भात खा रहे थे। अपने पात्र में थोड़ा-सा पाहार छोड़ दिया । दिट्ठ मंमलिका ने सोने के कलश से उनको जल दिया । उन्होंने वहीं अपना मुंह धोया, अपने हाथ धोए । दिट्ठ मंगलिका ने उनसे पूछा--"भन्ते ! मेरे पुत्र की दुर्दशा किसने कर दी। उसका मस्तक पीठ की मोर
१. इधागमा समणो रुग्मवासी,
प्रोतल्लको पंसु-पिसाचको नं। सङ्कारं-चोलं परिमुच्च कण्ठे,
सो ते इमं पुत्तं अकासि एवं ॥१२॥ २. कतमं दिसं अगमा भूरिपओ,
अक्खाय मे मारणव एतमत्थं । गन्वान तं पटिकरेसु अञ्चयं,
अप्पेव नं पुत्तं लभेसु जीवितं ॥ १३ ॥ ३. वेहायसं अगमा भूरि पञो, पथद्धनो पन्नरसे व चन्दो। मपि चारिण सो पुरिमं दिसं प्रगच्छिा ॥१४॥
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