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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
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के उपयुक्त - श्रेष्ठ क्षेत्र हैं।""
इस पर बोधिसत्त्व ने कहा - " जिनमें उच्च जाति का अहंकार प्रतिमानिता - अत्यन्त अभिमान, लोभ, ईर्ष्या, मद, मोह - ये प्रवगुरण विद्यमान हैं, वे इस लोक में दान के उत्तम क्षेत्र नहीं हैं । जिनमें जाति-मद, अहंकार, लालच, द्वेष, मान तथा मोह - ये दुर्गुण नहीं होते, वे ही इस लोक में दान के श्रेष्ठ क्षेत्र हैं । "
प्रवहेलना
बोधिसत्व ने जब बार-बार उसे दान की श्रेष्ठता, श्रश्रेष्ठता के बारे में कहा तो वह झुंझला उठा । वह बोला, - "यह बड़ा बकवास करता है। सभी द्वारपाल कहाँ हैं, जो इसे निकाल बाहर नहीं करते ।
"अरे उपजोति ! उपज्झाय ! भण्डकुच्छि । तुम सब कहाँ गए ? इस दुष्ट को डंडों से पीटो, गर्दन पकड़ कर मार-मार कर इसे धुन डालो।"
यह सुनकर उपजोति, उपज्झाय एवं भण्डकुच्छि आदि द्वारपाल वहाँ तत्काल भाए । उन्होंने कहा - "देव ! हम उपस्थित हैं ।"
[ खण्ड : ३
मण्डव्य बोला - "तुम लोगों ने इस चांडाल को देखा ?"
वे बोले - "हमने इसे नहीं देखा । हम यह भी नहीं जानते कि यह कहाँ से आया, विर से आया । यह कोई मायावी जादूगर मालूम होता है ।"
मंडव्य बोला -- " तब खड़े क्या देखते हो ?"
द्वार पाल बोले – “देव ! श्राज्ञा कीजिए, क्या करें ।"
१. खेत्तानि मय्हं विदितानि लोके,
येसाहं बीजानि पतिठ्ठपेमि । ये ब्राह्मणा जातिमन्तूपपन्ना, तानीध खेत्तानि सुपेसलानि ||५|| २. जातिमदे च प्रतिमानिता घ, लोभो च दोसो च भदो च मोहो । एते अगुणा येसु क्सन्ति सब्बे, तानीध खेत्तानि अपेसलानि ।। ६ ।। जातिमदो व प्रतिमानिता च लोभो व दोसो च मदो व मोहो । एते अगुणा येसु न सन्ति सब्बे, तानीष खेतानि सुपेलानि ॥७॥ ३. कन्येव भट्ठा उपजोतियो च उपज्झायो अथवा भण्डकुच्छि । हमस्स दण्डं च वषं च दवा, गले गत्वा जलयाय जम्मं ॥५॥
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