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________________ १५० पागम और त्रिपिटक : एक प्रानुशीलन [खण्ड : ३ मातंग जातक पिण्डोल भारद्वाज "कुतो नु मागच्छासि संमतासि" भगवान् बुद्ध ने जेतवन में विहार करते समय उदयनवंशीय राजाओं के सम्बन्ध में इस गाथा का उच्चारण किया। सम्बद्ध कथा इस प्रकार है : ___ भगवान् बुद्ध के अंतेवासी पिण्डोल भारद्वाज जेतवन से प्राकाश-मार्ग द्वारा प्रस्थान कर बहुधा कोसाम्बी में राजा उदयन के उद्यान में जाते तथा वहीं दिन व्यतीत करते । कारण यह था, पूर्व जन्म में स्थविर पिण्डोल भारद्वाज जब राजा थे, तब उसी उद्यान में अपने अनेक सभासदों के साथ अपनी संपत्ति का, सत्ता का, धन-वैभव का उन्होंने आनन्द लूटा था, वहीं हर्षोल्लास में अपना समय व्यतीत किया था। पूर्व-जन्म के परिचय के कारण तत्प्रसूत संस्कार के कारण वे अक्सर वहां जाते और काल-यापन करते। एक दिन का प्रसंग है, पिण्डोल भारद्वाज कोसाम्बी के उद्यान में गए, फूलों से खिले साल वृक्ष के नीचे बैठे। कोसाम्बी-नरेश उदयन सप्ताह-पर्यन्त सुरापान का आनन्द लेने के पश्चात् परिजन-परिचारक वृन्द के साथ, एक बड़े समुदाय के साथ उद्यान-क्रीड़ा हेतु उसी दिन वहाँ पहुँचा। मंगल-शिला पर एक स्त्री की गोद में लेटा। मदिरा के नशे में धुत्त था। सोते ही नींद आ गई। वहाँ जो नारियाँ गान कर रही थीं, उन्होंने राजा को सोया हुआ जानकर अपने वाद्य-यंत्र एक अोर रख दिए तथा स्वयं उद्यान में जाकर पुष्प एवं फल तोड़ने लगीं। उनकी दृष्टि स्थविर पिण्डोल भारद्वाज पर पड़ी। वे उनके पास गई। उनको प्रणाम किया और वहाँ बैठ गई। स्थविर पिण्डोल भारद्वाज धर्मोपदेश दे रहे थे। वे सुनने लगीं। राजा उदयन जिस स्त्री की गोद में सोया हुआ था. उसने शरीर हिलाकर राजा को नींद से जगा दिया। राजा जब उठा, तब उसे स्त्रियाँ नहीं दिखाई दी, जो वाद्य-यंत्रों के साथ गान कर रही थीं । राजा. क्रुद्ध हो उठा, बोला-"व चाण्डालनियाँ कहाँ चनी गई ?" तब स्त्री बोली-"उधर एक श्रमण धर्मोपदेश कर रहे हैं। वे उन्हें घेरे बैठी हैं।" यह सुनकर राजा को स्थविर पर बड़ा क्रोध आया। उसने कहा-"मैं स्थविर के शरीर को अभी लाल चींटियों से कटवाता हूँ।" उसने अपने सेवकों को वैसा करने की आज्ञा दी। सेवक एक दोने लाल चींटियां भरकर लाये। उन्हें स्थविर की देह पर छोड़ दिया। स्थविर अपने ऋद्धितप से आकाश में खड़े हो गए और वहीं से धर्म का उपदेश दिया। फिर आकाश-मार्ग द्वारा वे जेतवन में पहुंचे और गन्धकुटी के दरवाजे पर नीचे उतरे। . तथागत ने उनसे जिज्ञासा की-"कहाँ से आये हो ?" पिण्डोल भारद्वाज ने सारी घटना सुना दी। भगवान् ने कहा- "भारद्वाज ! यह उदयन प्रवजितों को केवल इस समय ही तकलीफ देता हो, ऐसा नहीं है । इसने पूर्व-जन्म में भी कष्ट दिया है।" Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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